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जबरन बेदखली से पीड़ित ग्रामीणों की व्यथा, बारिश में टूटी छतों के नीचे रोजी-रोटी का संकट

akvlive.in

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– जयस प्रतिनिधियों ने मौके पर पहुंचकर जाना हाल, वन विभाग की कार्यवाही पर उठे सवाल

डिंडौरी न्यूज। करंजिया वन परिक्षेत्र के ग्राम पंचायत जाड़ासुरंग अंतर्गत पोषक ग्राम बरेंडा में बीते सोमवार को वन विभाग एवं जिला प्रशासन की संयुक्त कार्यवाही में भारी पुलिस बल की मौजूदगी में ग्रामीणों के आशियाने उजाड़ दिए गए। ग्रामीणों के अनुसार, उन्हें जबरन बेदखल किया गया, उनकी कृषि भूमि में गड्ढे खोदकर खेती करने से रोका जा रहा है, जिससे उनकी आजीविका पर गहरा संकट उत्पन्न हो गया है।

इस कार्रवाई का ग्रामीणों ने विरोध भी किया, परंतु उनकी बात नहीं सुनी गई और उनके घरों को ध्वस्त कर दिया गया। बारिश के इन दिनों में लोग बिना छत के खुले आसमान तले जीवन जीने को मजबूर हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें न कोई वैकल्पिक व्यवस्था दी गई और न ही राहत प्रदान की गई।

वन विभाग का तर्क है कि ग्रामीण सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रहे थे, जिस कारण यह कार्यवाही की गई। लेकिन ग्रामीण इसे द्वेषपूर्ण और असंवेदनशील बताते हुए न्याय की मांग कर रहे हैं।

इस स्थिति की गंभीरता को देखते हुए जयस के प्रदेश अध्यक्ष इंद्रपाल मरकाम ने जिले के पदाधिकारियों के साथ मौके पर पहुंचकर प्रभावित ग्रामीणों से मुलाकात की। उनके साथ जिला अध्यक्ष नागेंद्र सिंह धुर्वे, संगठन मंत्री डिगंबर सिंह पट्टा, ब्लॉक अध्यक्ष अभिलाष श्याम, शाहपुरा प्रभारी सत्यप्रकाश धुर्वे, दिलीप उइके सहित कई अन्य कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

इंद्रपाल मरकाम ने कहा कि यह घटना मानवाधिकारों का उल्लंघन है। जयस इस मामले को हर स्तर पर उठाएगा और प्रशासन से तत्काल समाधान की मांग करेगा। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वे स्वयं संबंधित अधिकारियों से चर्चा कर जल्द से जल्द राहत और पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित करवाने का प्रयास करेंगे।

पीढ़ियों से कर रहे हैं जमीन पर खेती

जयस प्रतिनिधि मंडल को ग्रामीणों ने बताया कि कब्ज़ा वाली जमीन पर ग्रामीण कईयो पीढीयों से खेती कर रहे हैं,वर्ष 2004 में संबंधित खेती की जमीन पर कब्जे के कारण किसानों का नागर और नांधा जोता जब्ती वन विभाग द्वारा की गई थी,2013 में झड़प और प्रशासन और वन विभाग के लोग मारा-पीटी भी किसानों के साथ किया था और मुकदमा दायर किया था जिसकी सुनवाई प्रक्रियाधीन है।

इनका कहना है,,,
ग्रामीणों के साथ बैठक से पता चला है कि संबंधित जमीन पर किसान कई पीढ़ियों से खेती कर रहे हैं,जिसकी जानकारी वन विभाग को भी है वर्ष 2004 में नाधां,जोता भी वन विभाग ने जब्त किया था,वर्ष 2006 में वनाधिकार कानून वन-निवासी समुदायों को वन भूमि और संसाधन अधिकार प्रदान करके ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने का प्रयास करता है परंतु आज भी अन्याय जारी है ये सरकार की असफलता है जबकि 2005 के पहले का काबिज जमीनों पर पट्टा देने का प्रावधान है।प्रशासन द्वारा वनाधिकार के दावा देने का प्रयास प्राथमिकता और ईमानदारी से प्रयास नहीं किया गया,देवास में भी ऐसा ही मामला है यदि डिंडोरी वन‌ विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग संबंधित पीड़ित किसानों को जल्द कब्जा के दावा पत्र पट्टा नहीं देती है तो जयस बड़ा आंदोलन करेगा 29 को देवास में इसका एक रूप देखा जा सकता है।

इंद्रपाल मरकाम
जयस प्रदेश अध्यक्ष

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