अखलाक कुरैशी की रिपोर्ट
डिंडौरी न्यूज़/ गोरखपुर । डिंडौरी जिले के करंजिया विकासखंड एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार चर्चा की वजह कुछ और नहीं बल्कि ट्रांसफर हैं दरअसल विगत दिवस शासन प्रशासन ने अधिकारी कर्मचारियों का ट्रांसफर किया हैं नियमानुसार तबादला होते ही संबंधित कर्मचारियों को वर्तमान की पदस्थापना को तत्काल छोड़कर नवीन पदस्थापना वाले स्थान पर जाकर विधिवत आमद देना है लेकिन अफसोस बहुत से अधिकारी कर्मचारी तबादला नीति की नियम को ढेंगा दिखाकर अभी मोहवश उसी स्थान पर डटे हैं सवाल बड़ा है—आखिर ऐसा क्या विशेष है यहां के शिक्षा विभाग में कि जिनका स्थानांतरण हो चुका है, वे भी यहां से हटने को तैयार नहीं? शासन द्वारा ट्रांसफर आदेश जारी होने के बावजूद, कुछ अधिकारी एवं कर्मचारी “टस से मस” नहीं हो रहे। यह स्थिति न केवल शासकीय आदेशों की अवहेलना का संकेत है, बल्कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े करती है।
वर्षों से जमे हैं पदों पर, अब भी हटने को नहीं तैयार
सूत्रों की मानें तो विभाग में कार्यरत कई अधिकारी-कर्मचारी वर्षों से करंजिया मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ हैं। ट्रांसफर होने के बाद भी ये सभी किसी न किसी बहाने, राजनैतिक या प्रशासनिक संरक्षण के माध्यम से स्वयं को यहीं बनाए रखने में सफल हो रहे हैं। कुछ ने तो न्यायालय में स्थगन आदेश प्राप्त करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी है।इसी क्रम में बीईओ के प्रभार पर सेवा दें रहें राजेश कुमार पांडे का भी ट्रांसफर समनापुर हो गया है लेकिन यह अभी तक रिलीव नहीं किये गये जबकि करंजिया सीईओ बिना रिलीवर के आएं रिलीव कर दिए गए यह जानकर आमजन में आश्चर्य एवं संदेह दोनों हैं। आखिर ऐसा क्या आकर्षण है इस जनपद के शिक्षा विभाग में कि यहाँ से कोई जाना नहीं चाहता? जनचर्चाओं में यह विषय तीव्रता से उठ रहा है कि जब तक शिक्षा विभाग में जमे हुए अधिकारी-कर्मचारी नहीं हटाए जाएंगे, तब तक न तो कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आएगी और न ही शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार संभव होगा।
प्रशासनिक लचरता और चाटुकारिता की जड़ें
करंजिया विकासखंड के निवासियों का यह भी मानना है कि विभाग में बैठे कुछ लोगों को विशेष संरक्षण प्राप्त है। यही वजह है कि वर्षों से एक ही स्थान पर टिके रहने के बावजूद, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। चाटुकारिता का आलम यह है कि कई जगहों पर अतिथि शिक्षक तक, प्राचार्य की तुलना में अधिक प्रभावशाली भूमिका निभाते नजर आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि विभागीय अनुशासन एवं वरिष्ठता का कोई महत्व नहीं बचा है।
– भ्रष्टाचार की आहट: अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति व बिलों में अनियमितता
शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर संदेह इसलिए भी गहराया है क्योंकि कई मामलों में बिलों की फाइलिंग और अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति में गड़बड़ियों की आशंका व्यक्त की जा रही है। यदि निष्पक्ष जांच कराई जाए, तो इन मामलों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार उजागर हो सकता है। कुछ ऐसे गंभीर अनियमितता वाले उदाहरण हैं जो सीधे-सीधे सेवा समाप्ति एवं आपराधिक प्रकरणों तक ले जा सकते हैं।
– जनता का सवाल—क्यों हो रहा है संरक्षण?
सवाल केवल पदस्थ लोगों का नहीं है, सवाल उनके संरक्षकों का भी है। वे कौन लोग हैं जो ऐसे अधिकारियों को संरक्षण देकर शिक्षा व्यवस्था को गर्त में धकेल रहे हैं? यह समझना जरूरी है कि शिक्षा विभाग केवल एक शासकीय तंत्र नहीं है—यह क्षेत्र के बच्चों के भविष्य का आधार है। यहां पढ़ने वाले बच्चे किसी बाहरी जिले से नहीं आते, बल्कि वे आपके—संरक्षकों के ही—सगे-संबंधी, परिचित और पड़ोसी हैं।
– कलेक्टर को दिखानी होगी गंभीरता
यदि वास्तव में शिक्षा के स्तर को करंजिया में ऊंचा उठाना हैं, तो सबसे पहले ऐसे अधिकारियों को रिलीव किया जाना चाहिए जो विभाग में ‘अंगद के पैर’ की तरह जमे हुए हैं। शासन को चाहिए कि वह न केवल स्थानांतरण के आदेश को लागू कराए, बल्कि संबंधित अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से नवीन पदस्थापना स्थल पर कार्यभार ग्रहण करने हेतु बाध्य भी करे। जिले के कलेक्टर को स्वयं इस विषय में हस्तक्षेप करते हुए ऐसे अधिकारियों को रिलीव कर, जनहित में पारदर्शिता स्थापित करनी चाहिए।
– शिक्षा व्यवस्था को पुनः दिशा देने की आवश्यकता
करंजिया क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति पहले से ही संतोषजनक नहीं रही है। ऐसे में यदि वर्षों से जमे अधिकारी-कर्मचारी अपने हितों की पूर्ति के लिए प्रशासनिक आदेशों की अनदेखी करते रहेंगे, तो आने वाली पीढ़ी को केवल प्रमाण-पत्र मिलेंगे, ज्ञान नहीं।
इसलिए आवश्यकता है कि न केवल इन मामलों की जांच हो, बल्कि विभागीय तंत्र को साफ-सुथरा बनाने की दिशा में ठोस एवं प्रभावी कदम उठाए जाएं। ऐसे लोग जो शिक्षा विभाग को निजी व्यवसाय की तरह चला रहे हैं, उन्हें चिन्हित कर प्रशासनिक कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।