डिंडौरी न्यूज़ । ग्राम दुधेरा, ग्राम पंचायत बम्हनी, विकासखंड समनापुर, जिला डिंडौरी की युवा प्रियंका मरावी ने संघर्ष, साहस और शिक्षा के प्रति दृढ़ विश्वास के दम पर गाँव से दिल्ली तक पहुँचने की मिसाल पेश की है। नारी शक्ति आजीविका महासंघ बम्हनी से जुड़ी प्रियांका की यह उपलब्धि क्षेत्र की सैकड़ों लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई है।
कृषक और दिहाड़ी मज़दूर परिवार में जन्मी प्रियांका तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं। छोटी खेती और सीमित आय पर निर्भर परिवार में परिस्थितियाँ हमेशा कठिन रहीं, लेकिन प्रियांका ने हालातों के आगे झुकने से इंकार किया। पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने सब्ज़ियाँ बेचने, छोटे-मोटे काम करने और आजीविका मिशन में कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) के रूप में कार्य कर अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया। डॉक्टर बनने का सपना आर्थिक सीमाओं के कारण भले ही दूर होता गया, लेकिन उनका संकल्प और मेहनत कम नहीं हुई।
इस संघर्ष की नींव उनके परिवार के नेतृत्व और साहस में है, विशेषकर उनकी दादी चिरोंजा दीदी में—जो आजीविका मिशन तथा PRADAN संस्था द्वारा गठित स्व-सहायता समूह (SHG) की सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक रही हैं। महिलाओं को संगठित करना, आजीविका बढ़ाना, लैंगिक समानता की वकालत करना—इन सभी में चिरोंजा दीदी ने वर्षों से महत्वपूर्ण योगदान दिया। पोल्ट्री सहकारी संस्था (Poultry Cooperative) के माध्यम से मिला छोटा पोल्ट्री यूनिट परिवार की स्थायी आय का आधार बना, जिसने पोतियों की शिक्षा को कभी रुकने नहीं दिया। इसी वातावरण में प्रियांका ने हौसला, नेतृत्व और संघर्ष को जीना सीखा।
उनके जीवन का मोड़ तब आया जब वे PRADAN के युवक-शक्ति कार्यक्रम (Yuva Shastra Program – YSP) से जुड़ीं। यहीं से उन्हंआ शिव नादर यूनिवर्सिटी, दिल्ली में एम.ए. इन डेवलपमेंट स्टडीज़ में प्रवेश का अवसर मिला। आजीविका मिशन, YSP और PRADAN टीम के मार्गदर्शन में उन्होंने आवेदन किया और चयनित हो गईं। प्रियंका इस अगस्त छात्रवृत्ति के साथ दिल्ली जाएँगी।
प्रियंका का संकल्प है कि पढ़ाई पूरी कर अपने गाँव लौटें और आदिवासी समुदायों तथा विशेष रूप से ग्रामीण लड़कियों के लिए अवसरों का निर्माण करें।
उनकी दादी चिरोंजा दीदी गर्व से कहती हैं— “ये सब आजीविका मिशन और PRADAN के बिना संभव नहीं था। उन्होंने मेरी पोती पर विश्वास किया, जब मैं भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।”
प्रियंका की यह यात्रा सिर्फ़ एक युवा लड़की की सफलता नहीं है— यह नारी शक्ति, सामूहिक सहयोग, संघर्ष और उम्मीद की वह कहानी है जो बताती है कि सही मार्गदर्शन और अवसर मिलने पर गाँव की बेटियाँ भी दुनिया की किसी भी मंज़िल को छू सकती हैं।
यह कहानी दुधेरा की हर उस लड़की के लिए एक चमकती हुई रोशनी है— जो सपने देखती है, और उन्हें पूरा करने की हिम्मत भी रखती है।









