– पद और अधिकारों का दुरुपयोग कर फर्जी दस्तावेजों धारकों को नौकरी में किया बहाल
– आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेजों में हुआ खुलासा, सिटी कोतवाली में शिकायत दर्ज
Dindori Today News,डिंडौरी न्यूज। डिंडौरी जिले में लंबे समय तक पदस्थ रहे सहायक आयुक्त संतोष शुक्ला के काले कारनामों की पोल खुलने लगी हैं। जनजातीय कार्य विभाग डिंडौरी में स्कूलों मरम्मत, खरीदी, सप्लाई के साथ ही अटैचमेंट और अलाटमेंट में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुआ है। इसके साथ ही सहायक आयुक्त डॉ. संतोष शुक्ला पर पद और अधिकारों का खुला दुरुपयोग किए जाने के मामले भी जगजाहिर हैं। एक ऐसे ही मामले में न्यायालयीन निर्देशों की अनदेखी कर फर्जी डीएड डिप्लोमा धारक शिक्षकों को सेवा में बहाल करने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस पूरे प्रकरण को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट चेतराम राजपूत ने सिटी कोतवाली डिंडौरी में लिखित शिकायत देते हुए डॉ. शुक्ला पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।
शिकायत में कहा गया है कि सहायक आयुक्त संतोष शुक्ला ने अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए वर्ष 2011 – 12 में फर्जी डीएड डिप्लोमा के आधार पर संविलियन करवाने वाले शिक्षकों को दोबारा सेवा में बहाल कर दिया। इनमें प्रमुख रूप से शिक्षिका आरती मोंगरे और शिक्षक संतु मरकाम शामिल हैं, जिनके विरुद्ध पूर्व में समनापुर थाना में फर्जी दस्तावेजों के उपयोग को लेकर 2018 में आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था और दोनों को जेल भी भेजा गया था।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि बहाली के दौरान दस्तावेजों का कोई सत्यापन नहीं किया गया। यहां तक कि आरटीआई आवेदन के बावजूद संबंधित बहाली दस्तावेज भी विभाग ने उपलब्ध नहीं कराए, जिससे प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
प्रकरण की पृष्ठभूमि में डिंडौरी न्यायालय के आदेश दिनांक 19 सितंबर 2024 का हवाला दिया गया है, जिसमें साफ निर्देशित किया गया था कि डीएड डिप्लोमा की वैधता की पुनः जांच की जाए। आदेश की कंडिका क्रमांक 31 में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आरोपी शिक्षकों की अंकसूची कूटरचित प्रतीत होती है और विभागीय जांच अनिवार्य है, भले ही वे आपराधिक प्रकरण से दोषमुक्त हो चुके हों।
विशेष रूप से आरती मोंगरे, संतु मरकाम, अजमेर दास सोनवानी और मुकेश द्विवेदी जैसे नामों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि उनके प्रमाणपत्रों में समान अंक, पुराने फॉर्मेट और पदस्थ नहीं रही प्राचार्य के फर्जी हस्ताक्षर जैसे तथ्य सामने आए हैं, जिससे इनके दस्तावेजों की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है।
डॉ. संतोष शुक्ला पर यह भी आरोप है कि उन्होंने न केवल फर्जी दस्तावेज धारकों को बहाल किया, बल्कि निलंबन अवधि का वेतन भी दिलवाया, जिससे शासन को लाखों की आर्थिक क्षति हुई।
आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकार चेतराम राजपूत ने मांग की है कि इस पूरे षड्यंत्र की गहन जांच की जाए और डॉ. संतोष शुक्ला के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता की सुसंगत धाराओं में एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्यवाही की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जांच के दौरान वे आवश्यक दस्तावेज और साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे।
यह प्रकरण केवल भ्रष्टाचार ही नहीं, बल्कि शासकीय आदेशों की अवहेलना और न्यायिक प्रक्रिया के अपमान का भी गंभीर मामला बन गया है।