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Mp High Court News: राज्य शासित मंदिरों में केवल एक जाति को पुजारी नियुक्त करने की नीति पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल, चार सप्ताह के भीतर मांगा जवाब

akvlive.in

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– अजाक्स संघ की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी

जबलपुर न्यूज। अजाक्स की जनहित याचिका पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस नीति पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिसके तहत राज्य नियंत्रित मंदिरों में केवल एक विशेष जाति (ब्राह्मण) को पुजारी पद पर नियुक्त करने और उन्हें राजकोष से वेतन देने की व्यवस्था की गई है। इस संबंध में अजाक्स संघ द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति श्री सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

याचिका में उठाया गया है यह महत्वपूर्ण मुद्दा ?

याचिका संख्या 16613/2025 में याचिकाकर्ता अजाक्स संघ ने वर्ष 2019 में मध्य प्रदेश शासन के अध्यात्म विभाग, भोपाल द्वारा जारी विनिर्दिष्ट मंदिर विधेयक 2019 की धारा 46 और उससे संबंधित दो आदेश (दिनांक 04.10.2018 एवं 04.02.2019) को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं पुष्पेंद्र शाह ने कोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि राज्य सरकार ने लगभग 350 से अधिक मंदिरों को अधिसूचित कर राज्य नियंत्रित मंदिर घोषित किया है, जिनमें पुजारियों की नियुक्ति प्रक्रिया को एक जाति विशेष तक सीमित कर दिया गया है।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट फाइल फोटो

इसके तहत केवल ब्राह्मण वर्ग को ही पुजारी बनाए जाने का प्रावधान किया गया है और नियुक्त पुजारियों को राज्य के खजाने से वेतन भी दिया जा रहा है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह व्यवस्था न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव निषेध), अनुच्छेद 16 (समान अवसर) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करती है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की मूल भावना के भी विरुद्ध है।

धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सामाजिक समानता

अधिवक्ताओं ने यह भी दलील दी कि हिन्दू धर्म में केवल ब्राह्मण ही नहीं, बल्कि ओबीसी, एससी एवं एसटी वर्ग भी शामिल हैं। ऐसे में हिन्दू समुदाय की पूजा-पद्धति में केवल एक जाति को प्रतिनिधित्व देना संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध है। उन्होंने बी.पी. मंडल आयोग और रामजी महाजन आयोग की रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार ओबीसी जातियां ‘छूने योग्य शूद्र’ और एससी-एसटी ‘अस्पृश्य शूद्र’ की श्रेणी में वर्णित हैं। परंतु संविधान लागू होने के बाद छुआछूत और वर्ण-व्यवस्था समाप्त हो चुकी है।

प्रतीकात्मक फोटो

याचिकाकर्ता के अनुसार, जहां भी राज्य निधि (राजकोष) से वेतन का भुगतान किया जाता है, वहां आरक्षण और समान अवसर के संवैधानिक प्रावधानों का पालन अनिवार्य है। ऐसे में राज्य द्वारा वेतनभोगी पुजारी नियुक्त करने की स्थिति में नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण लागू करना आवश्यक है।

डिप्टी एडवोकेट जनरल ने रखा राज्य सरकार का पक्ष

राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभीजीत अवस्थी ने याचिका की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि अजाक्स संघ एक कर्मचारी संगठन है, जिसे धार्मिक नियुक्तियों से संबंधित याचिका दायर करने का कानूनी अधिकार नहीं है। लेकिन याचिकाकर्ता के वकीलों ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि जब राज्य सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है और वेतनभोगी पद सृजित कर रही है, तो यह सार्वजनिक महत्व का विषय बन जाता है, जिस पर कोई भी संगठन जनहित याचिका दायर कर सकता है।

हाईकोर्ट ने 04 सप्ताह के भीतर मांगा जवाब

प्रस्तुत तर्कों और तथ्यों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने याचिका को विचारार्थ स्वीकार कर लिया है और मध्य प्रदेश शासन के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव (सामान्य प्रशासन), सामाजिक न्याय मंत्रालय, धार्मिक एवं धर्मस्व मंत्रालय और लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

 प्रकरण ने राज्य शासित मंदिरों में जातीय आधार पर नियुक्तियों की वैधानिकता पर एक नई बहस छेड़ दी है। यदि कोर्ट इस नीति को असंवैधानिक घोषित करता है, तो यह देशभर में मंदिर प्रशासन और धार्मिक पदों पर समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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