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Dindori News: जर्जर भवन गिराकर भूले जिम्मेदार, खुले आसमान तले चल रही नौनिहालों की पाठशाला

akvlive.in

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अखलाक कुरैशी गोरखपुर/डिंडौरी। सरकार भले ही सरकारी स्कूलों में तमाम व्यवस्थाएं सुदृढ़ करने के दावें करता रहें मगर इसकी जमीनी सच्चाई कुछ और ही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सुविधा विहीन वातावरण में स्कूल का संचालन बेरोकटोक किया जा रहा हैं एक ऐसा ही ताजा मामला सामने आया हैं डिंडौरी जिले के करंजिया विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत पाटनगढ़ माल का जहां प्राइमरी स्कूल की बदहाल स्थिति देखकर विकास के सारे मायने ही बदल जाते हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों के दुख दर्द की कहानी शुरू होती हैं गत वर्ष से जब सरकारी आदेश पर यहां के प्राइमरी स्कूल भवन को अधिक जर्जर होने पर डिस्मेंटल कर गिरा दिया गया लेकिन बच्चे कहां बैठेंगे स्कूल का संचालन कैसे होगा इस बात की चिंता नहीं किया गया परिणामस्वरुप नौनिहालों के लिए न तो सुरक्षित छत का इंतजाम है और ना ही बच्चों को बैठने के लिए पर्याप्त स्थान ऐसे में एक से पांच कक्षाओं के बच्चों को एकसाथ खुले आसमान के नीचे जमीन में बैठाकर शिक्षाध्यन करना मजबूरी बन चुका हैं। हालांकि जब कभी पंचायत भवन खाली रहता हैं तो बच्चे यहीं बैठते हैं लेकिन ग्राम पंचायत में आमसभा ग्रामसभा या कोई आयोजन किया जाता हैं तब इन छात्र छात्राओं को सर्दी, गर्मी बरसात मौसम कोई भी हो खुले मैदान में ही बैठना पड़ता हैं ।

आसमान तले अध्ययन करते हुए नौनिहाल

लगातार ऐसे हालातों के बीच उन बच्चों के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता हैं कि इन मासूमों को कैसे कैसे यात्ना सहना पड़ता होगा ये बच्चें जिनके पास खुद का ठिकाना नहीं के शिक्षा का स्तर कैसा होगा, ऐसे में सरकार की सारी फ्री की योजना, गणवेश,किताब,मध्यांह भोजन, साइकिल के कोई मायने नहीं जब आप एक अदद भवन नहीं दे सकते तो बहरहाल इससे पहले कि सरकारी स्कूलों के प्रति अभिभावकों की विश्वसनीयता घटने लगें हैं बदहाल शिक्षा व्यवस्था को सुधारना आवश्यक हो गया है यदि इसी प्रकार अव्यवस्था हावी रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब गांव गांव निजी स्कूल संचालित होने लगें और सिर्फ नाम के लिए सरकारी बच जाएं अब आगे यह देखना होगा कि जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन दोनों मिलकर यहां कैसे व्यवस्था बनाएंगे।

क्या!कमाल कर पाएंगे बच्चें – 

 कहां जाता हैं कि यदि किसी भी स्तंभ की नींव मजबूत हो तो फिर उस पर कितना भी वजन चढ़ाया जाए फर्क नहीं पड़ता मगर नींव कमजोर है तो उसके ऊपर क्षमता से अधिक रखा गया भार स्तंभ का ही बंटाधार करता हैं। यह उदाहरण यहां के प्राइमरी स्कूल के बच्चों को एक साथ बैठकर पढ़ाई करते हुए देखने बाद इन पर सटीक बैठता है क्योंकि जब यहां के विघार्थियों के लिए बैठक व्यवस्था नहीं हैं तो जाहिर है कि यहां वहां भटकते रहने से ये क्या पढ़ पाते होंगे बच्चों को कक्षावार विषयनुसार क्या शिक्षा दिया जाता है यह यक्ष प्रश्न की तरह ही है जिसका जवाब शायद कोई दे पाएं यघपि ऐसे दूषित वातावरण में जहां हर समय किसी न किसी समस्या का पैदा होना होता हैं बच्चे ध्यान से नहीं पढ़ पाते स्कूल की पांचवीं की छात्रा सारिका श्याम ने बताया कि बरसात के दौरान जब खुले में कक्षा लगी थी तो वह सभी बारिश के पानी से भीग चुके हैं और लगभग चार बार ऐसा हुआ है कक्षा चार की छात्रा दुर्गेश नंदनी धुर्वे ने बताया कि क्लास लगने के दौरान सांप और बिच्छू आकर घूमते रहते हैं ऐसे में उनका पढ़ाई से मन उचाट हो जाता हैं छात्र अनुराग कुशराम,मितेंद्र मरावी, अंजनी श्याम ने बताया कि उन्हें पढ़ना हैं लेकिन स्कूल में व्यवस्थाओं की बेहद कमी हैं हम लोग जहां खुले में बैठते हैं चारों तरफ झाड़ियां ही झाड़ियां हैं ऐसे में उन्हें कीड़े मकोड़ों का डर हमेशा सताता है लेकिन क्या करें दूसरा विकल्प भी नहीं इसलिए मजबूरी ही सही यहीं पढ़ने आते हैं बहरहाल तमाम सुविधाओं के अभाव में शिक्षा के क्षेत्र में इनके पारंगत होकर प्रशिक्षित होने की कल्पना करना बेमानी हैं ।

जर्जर अवस्था में शौचालय

बच्चों के भविष्य से न किया जाए खिलवाड़

पालकों ने शासन प्रशासन से अपील की हैं कि ये कैसा शिक्षा का अधिकार है जहां न तो भवन हैं और न अन्य सुविधाएं दुरुस्त हैं केवल खोखले वादे हैं यदि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब बच्चों को वास्तव में शिक्षित करना चाहते हैं तो, हमारे बच्चों के लिए मूलभूत सुविधाओं के साथ बैठक व्यवस्था के लिए तत्काल इंतजाम किए जाएं क्योंकि हमारे बच्चों का भविष्य किसी भी योजना या प्रक्रिया से अधिक महत्वपूर्ण है, और शिक्षा का अधिकार केवल कागजों पर नहीं, जमीन पर दिखाई देना चाहिए। यदि इस पर शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया, तो बच्चों में शिक्षा के प्रति अरुचि बढ़ सकती है। वैसे भी कई अभिभावक पहले से ही अपने बच्चों को निजी स्कूलों की ओर भेजने का विचार कर रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगी।

बिना दरवाजे का शौचालय जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर

गौरतलब हैं कि इस स्कूल के बालक शौचालय दरवाजा नहीं हैं फिलहाल कामचलाऊ व्यवस्था बनाते हुए कपड़े से आड़ कर दिया गया हैं , वहीं अधिकांश समय बच्चे टूटे फूटे फर्श पर बैठकर पढ़ते हैं, लेकिन यह भी सोचनीय हैं कि बरसात के दिनों में जब फर्श भीग जाती हैं, तो बच्चे कैसे पढ़ाई करते है। न पंखे की सुविधा न बिजली की सही व्यवस्था। न सिर छुपाने की जगह धूप और गर्मी में बच्चे बेहाल रहते हैं। ऐसे कठिन हालातों में शिक्षा की गुणवत्ता तो बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं किंतु इन मासूमों की क्या गल्ती जो इस तरह सजा काट रहे हैं बहरहाल करंजिया विकासखंड में शिक्षा विभाग की दयनीय स्थिति के बारे में सभी को सब कुछ पता हैं लेकिन व्यवस्थाओं का जिम्मा लेने कोई आगे नहीं आता यह दुखद पहलू है।

ग्रामवासियों और पालकों ने उठाई आवाज

ग्रामवासियों और पालकों का कहना है कि उन्होंने कई बार इस विषय में जनपद शिक्षा केंद्र, पंचायत सचिव और जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन दिया, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। शनिवार की शाम ट्रायबल डिंडौरी पाटनगढ़ चित्रकला भवन में गोंड आर्ट देखने पहुंचे थें तब उनके साथ करंजिया ब्लाक के बीईओ और बीआरसी भी मौजूद थे तो यकीनन उन्होंने पाटनगढ़ माल के प्राइमरी स्कूल की स्थिति के बारे में पूछताछ करते हुए संज्ञान लिया होगा और यदि नहीं लिया तो यह माना जाएगा कि जनपद के शिक्षाधिकारियों ने इस कमी को उजागर होने से बचाएं रखने के लिए उन्हें मालूम नहीं होने दिया। यघपि ग्राम के नागरिक कहते हैं कि हमारे बच्चे स्कूल तो जाते हैं, लेकिन पढ़ाई से ज्यादा समय उन्हें बैठने की जगह ढूंढने में निकल जाता हैं। अगर मैदान में बैठकर पढ़ रहे और बारिश हो जाए तो पढ़ाई रुक जाती हैं। सरकार को बच्चों के भविष्य के बारे में गंभीर होना चाहिए।

इसी तरह महिला पालक कहती हैं, हम गरीब हैं, हमारे पास निजी स्कूलों में भेजने की सुविधा नहीं है। सरकारी स्कूल ही हमारे बच्चों की उम्मीद है, लेकिन हालत देखकर मन दुखी हो जाता है। इतनी कठिनाई में बच्चे क्या सीख पाएंगे ।

स्कूल के शिक्षक संतोष कुमार यादव ने बताया कि सीमित संसाधनों में बच्चों को शिक्षित करना एक बड़ी चुनौती बन गया है। हमारा मकसद बच्चों को बेहतर शिक्षा देना है, लेकिन जगह और सुविधाओं के अभाव में हम भी विवश हैं । शिक्षक बताते हैं कि इतनी कक्षाओं को एक कमरे में समेटना बेहद कठिन है।

भवन तुड़वा तो दिए लेकिन बैठक व्यवस्था की चिंता नहीं किए ऐसे में छोटे छोटे बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं यह बेहद अफसोसजनक हैं सरकार व्यवस्था बनाने में नाकाम हैं। प्रशासन को इसे तत्काल संज्ञान में लेकर व्यवस्था बनाना चाहिए।

अयोध्या बिसेन, कांग्रेस कमेटी ब्लाक अध्यक्ष करंजिया

मैंने यहां की समस्या को लेकर व्यक्तिगत तौर पर कलेक्टर और विभागीय अधिकारी से मिलकर वास्तविक स्थिति से अवगत कराई हूं, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ, यघपि ऐसे खुले में बैठने से बच्चों को काफी समस्याएं आ रही हैं उनका बौध्दिक क्षमता कैसे विकसित होगा सोचनीय यह सरासर शिक्षा विभाग की लापरवाही हैं।

गीता पट्टा , क्षेत्रीय जनपद सदस्य एवं ब्लाक शिक्षा समिति अध्यक्ष करंजिया

Chetram Rajpoot

चेतराम राजपूत मध्यभूमि के बोल समाचार पत्र के संपादक हैं। 2013 से इस दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने madhyabhoomi.in को विश्वसनीय समाचार स्रोत बनाया है, जो मुख्यधारा की मीडिया से अलग, विकास, समानता, आर्थिक और सामाजिक न्याय जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित है। हम सच्चाई और पारदर्शिता में विश्वास रखते हैं। मीडिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए सतत प्रयासरत हैं। बेखौफ कलम... जो लिखता है बेलिबास सच..

Chetram Rajpoot

चेतराम राजपूत मध्यभूमि के बोल समाचार पत्र के संपादक हैं। 2013 से इस दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने madhyabhoomi.in को विश्वसनीय समाचार स्रोत बनाया है, जो मुख्यधारा की मीडिया से अलग, विकास, समानता, आर्थिक और सामाजिक न्याय जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित है। हम सच्चाई और पारदर्शिता में विश्वास रखते हैं। मीडिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए सतत प्रयासरत हैं। बेखौफ कलम... जो लिखता है बेलिबास सच..