डिंडौरी। कृषि विज्ञान केन्द्र डिंडौरी के स्वामी विवेकानंद सभागार में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के अंतर्गत चल रहे पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम (25 से 29 सितंबर 2025) में कृषि सखियों को जैविक खेती के महत्व और उसके व्यावहारिक प्रयोगों की गहन जानकारी दी जा रही है।
प्रशिक्षण के तीसरे दिन मास्टर ट्रेनर डॉ. गीता सिंह एवं श्री अवधेश कुमार पटेल के मार्गदर्शन में कृषि सखियों ने स्वयं प्रक्षेत्र पर बीजामृत एवं जीवामृत का निर्माण कर प्राकृतिक खेती की उपयोगी विधियों का अभ्यास किया। बीजामृत का प्रयोग बीजों के उपचार हेतु तथा जीवामृत का प्रयोग फसलों में वृद्धि वर्धक टॉनिक के रूप में किया जाता है।
बीजामृत बनाने की विधि पर जानकारी देते हुए बताया गया कि 100 किलो बीज को उपचारित करने के लिए 5 किलो देसी गाय का गोबर, 5 लीटर गौमूत्र, 50 ग्राम खाने का चूना, 500 ग्राम खेत की मिट्टी तथा 20 लीटर पानी का मिश्रण तैयार किया जाता है। इसे 24 घंटे तक रखा जाता है तथा दिन में दो बार लकड़ी के डंडे से घड़ी की दिशा में घुमाया जाता है। इसके बाद बीजों पर इसका छिड़काव या बीजों को इसमें डुबोकर सुखाने के उपरांत बुवाई की जाती है।
प्रशिक्षण के दौरान श्री अवधेश पटेल ने प्राकृतिक खेती की अवधारणा, पशुधन के समन्वयन से खेती को सुदृढ़ बनाने, बीज एवं पौध सामग्री, बीज उपचार एवं रोपण की विधियों पर विस्तार से जानकारी दी। श्रीमती रेनू पाठक ने स्वास्थ्य और स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला, वहीं डॉ. मनीषा श्याम ने फसल विविधीकरण एवं उन्नत किस्मों के बारे में उपयोगी जानकारी दी।
डॉ. गीता सिंह ने कृषि सखियों को मृदा परीक्षण की विधियां, नमूना एकत्रीकरण, केंचुआ खाद उत्पादन तथा जैविक तरीकों से कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र और अग्नि अस्त्र जैसी तैयारियों की विधि और उपयोग के बारे में बताया। साथ ही चूहा एवं दीमक नियंत्रण के सरल उपाय भी साझा किए।
प्रशिक्षण सत्र के अंत में मनोरंजन और उत्साहवर्धन हेतु कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें सभी कृषि सखियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और विजेताओं को पुरस्कृत भी किया गया।
इस प्रशिक्षण से न केवल कृषि सखियों को प्राकृतिक खेती की वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक जानकारी प्राप्त हुई बल्कि जैविक खेती को अपनाकर मृदा एवं मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाने का संदेश भी मजबूती से उभरा।