डिंडोरी विधायक ओमकार मरकाम ने भी विधानसभा में उठाया था गरीबी का मुद्दा
सबसे गरीब आदिवासियों पर दोहरी मार – गरीबी और 85 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय
शहपुरा डिण्डौरी। मध्यप्रदेश का डिंडोरी जिला प्रतिव्यक्ति आय के मामले में सबसे निचले पायदान पर है। यहां की गरीब बैगा आदिवासी जनजाति पहले से ही रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है। एक तरफ बेरोजगारी, आर्थिक तंगी और विकास संसाधनों की कमी है, तो दूसरी ओर इनकी मुश्किलें और बढ़ा देती है 85 किलोमीटर दूर स्थित जिला मुख्यालय डिंडोरी।
गरीब आदिवासी जब किसी शासकीय कार्य के लिए निकलते हैं तो उन्हें पूरा दिन इसी भागदौड़ में गंवाना पड़ता है। मजदूरी करने वाले आदिवासी का मतलब है – उस दिन की मजदूरी खत्म, ऊपर से बस-भाड़े का खर्चा अलग। यानी गरीबी के बीच उन्हें सरकारी काम कराने के लिए और भी अधिक आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।
विधानसभा में उठा मुद्दा, लेकिन समाधान नहीं
डिंडोरी विधायक ओमकार मरकाम ने भी विधानसभा में यह मुद्दा उठाया कि डिंडोरी सबसे कम प्रतिव्यक्ति आय वाला जिला है और यहां के लोग बदहाली में जी रहे हैं। लेकिन अफसोस, सरकार की तरफ से अभी तक ठोस पहल नहीं हुई।
दूरस्थ जिला मुख्यालय = विकास में बाधा
मानिकपुर, धिरवन, ददरगांव, बिछिया, कनेरी जैसे गांवों के लोगों को शहपुरा से डिंडोरी तक 75 से 85 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। यातायात के साधन सीमित हैं, रेल मार्ग तक नहीं है, उद्योग-धंधों का नामोनिशान नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आदिवासी क्षेत्रों को विकास से वंचित रखना ही सरकार की नीति बन गई है?
शहपुरा को जिला बनाने की मांग
यह मांग नई नहीं है। वर्षों से शहपुरा क्षेत्र के लोग प्रशासनिक सुविधा के लिए इसे जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। यदि शहपुरा जिला बने तो न केवल सरकारी कार्य यहीं पूरे होंगे बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे।
सरकार को सोचना होगा
आज जब सरकारें समृद्ध और संपन्न क्षेत्रों को और भी चमकाने में जुटी हैं, तब सबसे गरीब बैगा आदिवासियों के लिए जिला मुख्यालय तक पहुंचना भी किसी सजा से कम नहीं।
अगर सरकार वास्तव में “विकास सबका” का दावा करती है, तो उसे पहले शहपुरा जैसे उपेक्षित क्षेत्रों की पीड़ा समझनी होगी और अविलंब शहपुरा को जिला बनाने का निर्णय लेना होगा।