अखलाक कुरैशी, गोरखपुर/डिंडौरी। जिले के करंजिया विकासखंड अंतर्गत कस्बा गोरखपुर के सेंट्रल बैंक में एक दशक से पहले ऋणपुस्तिका में छेड़छाड़ करके रकबा बढ़ाकर ऋण वितरण फर्जी लोन मामले में अब नित्य नये नये अनोखे मामले परत दर परत खुलने लगे हैं ,वहीं मीडिया में समाचार प्रकाशित होने के बाद अब क्षेत्र के पीड़ित अशिक्षित ग्रामीण भी खुलकर सामने आने आ रहें हैं इसी क्रम में शनिवार को माधोपुर के दो नागरिकों के साथ फर्जीवाड़ा करने वालों के गैंग ने ऐसा कारनामा किया जिसे सुनकर सभी नाराज हुए बिना नहीं रह सकते यहां साजिशकर्ताओं के द्वारा एक अजीबोगरीब मामला नजरों के सामने आया जिसे पीड़ितों की जुबानी दास्तान सुनकर जितनी हैरानी हुई उससे कहीं दोगुना गुस्सा आया। दरअसल यहां के एक ऐसे दिव्यांग व्यक्ति के नाम पर लोन पास कराकर पैसे निकासी किया गया हैं जो कि जन्म से ही गूंगा था और दूसरा ऐसा व्यक्ति हैं जिसके नाम पर जमीन नहीं हैं बावजूद दलालों की टोली ने मिलीभगत कर उसे बैंक का कर्जदार बना दिया ।
मामला – 1
करंजिया विकासखंड के ग्राम पंचायत चंदना के समलिया धुर्वे जो कि जन्म से ही गूंगा था जिसका पिछले आठ वर्ष पूर्व निधन हो गया हैं पैसों के लालची जालिमों ने इस पर भी तरस नहीं खाया और इसके नाम पर दो लाख इक्कीस हजार दो सौ पैंतीस रुपए का कर्जदार बनाकर पैसा खुद रख लिया।
मामला -2
बद्री सिंह पिता गुलाब निवासी माधोपुर जो कि जमीन विहीन हैं इसके नाम पर कहीं कोई जमीन नहीं न ही कोई ऋण पुस्तिका हैं बावजूद ठग गैंग ने इसे भी निन्यानबे हजार पांच सौ तैंतीस रुपया का कर्जदार बना दिया। बद्री ने बातचीत में बताया कि यह नोटिस उसे पहली बार मिला हैं लोन के नाम पर वह अभी न तो बैंक गया और न ही पैसा लिया और न ही किसी से संपर्क किया फिर भी मेरा नाम पर लोन चढ़ा दिया गया शनिवार को मैं इस संबंध में जानकारी लेने बैंक गया था लेकिन बैंक था।
– न बैंक गये न ऋण लिया, बैंक ने बताया कर्जदार
ग्रामीणों ने बताया कि यह गजब का कारनामा हैं कि हमारे मां बाप के निधन पश्चात उनके नाम पर ऋण लिया गया, जबकि सच्चाई यह है कि वो कभी न तो बैंक गये और न ही इस प्रकार की कोई राशि मिली जब बैंक वाले किसान क्रेडिट कार्ड जैसे में पहले आकर जमीन देखते हैं पूरा जांच पड़ताल करने के बाद संतुष्ट होते हैं तभी लोन देते हैं अन्यथा आप चक्कर काटते रहो आपका काम नहीं होगा फिर इतना बड़ा लोन बिना जमीन देखें कैसे पास कर दिया बड़ा सवाल है राशि लेने के लिए बाकायदा बैंक अधिकारी को पहले गांव आकर ग्रामीणों की भूमि की पड़ताल करनी चाहिए और ऋण देते समय कृषक से आहरण पर्ची लेकर उन्हें ऋण दिया जाना था पर यहां पर ऐसा कुछ नहीं किया गया और कृषकों को कर्जदार बना दिया गया।
ऋण पुस्तिका में हेराफेरी –
इस पूरे प्रकरण में किसानों को ऋण देने के लिए उनकी ऋण पुस्तिका में भूमि का रकबा बढ़ाया गया ताकि ऋण की राशि बढ़ जाए जिस किसान के पास दो हेक्टेयर भूमि है, उसकी भूमि को चार हेक्टेयर कर दिया गया साथ ही सभी ऋण पुस्तिकाओं में हाथ से ओवरराइटिंग की गई है। कुछ में व्हाइटनर लगाकर रकबा बढ़ाया गया। इसे देखकर भी किसान चकरा गए। उनका कहना था कि उनके पास इतनी भूमि है ही नहीं जितना ऋण पुस्तिका में दर्ज किया गया है।
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