– वन संरक्षण अधिनियम और हाईकोर्ट के आदेशों को किया दरकिनार, डिंडौरी में फलदार कटहल का अवैध कटाव
Dindori News, डिंडौरी। पर्यावरण संरक्षण के दावों और पेड़ संरक्षण के सख्त कानूनों के बावजूद सरकारी अधिकारी ही नियमों को ताक पर रखकर हरियाली का गला घोंट रहे हैं। ताजा मामला डिंडौरी जिले के यातायात थाना परिसर का है, जहां थाना प्रभारी सुभाष उईके ने दिनदहाड़े परिसर में लगे संरक्षित फलदार कटहल के पेड़ की अवैध छंटाई और कटाई करवा दी। यह कार्रवाई न केवल कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी है, बल्कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के ताज़ा आदेशों और वन संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन भी है।
बिना अनुमति हुआ पेड़ का ‘कत्लेआम’
प्राप्त जानकारी के अनुसार थाना परिसर में स्थित हरे-भरे कटहल के पेड़ को “छंटाई” के नाम पर इस कदर काटा गया कि पेड़ पूरी तरह कुरूप हो गया। पेड़ के प्रमुख तने और शाखाएं काट दी गईं, और इस पूरी कार्रवाई के लिए न तो वन विभाग से पूर्व अनुमति ली गई और न ही किसी सक्षम प्राधिकारी से स्वीकृति प्राप्त की गई।

कानून के रखवाले ही कानून तोड़ने में आगे
वन संरक्षण अधिनियम 1980, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मार्च 2025 के आदेशों के तहत कटहल समेत 62 प्रजातियों के पेड़ संरक्षित घोषित किए जा चुके हैं। इन पेड़ों की कटाई या छंटाई बिना विधिवत अनुमति के अपराध की श्रेणी में आती है। इसके बावजूद कानून के रक्षक ही जब नियमों की अवहेलना करें, तो शासन की नीति और नियमों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है।
वन विभाग ने दी सफाई
इस मामले में जब वन विभाग से संपर्क किया गया तो डिंडौरी के डीएफओ पुनीत सोनकर ने स्पष्ट कहा:
“पेड़ की कटाई या छंटाई से संबंधित कोई आवेदन वन विभाग को नहीं मिला है और विभाग द्वारा कोई अनुमति जारी नहीं की गई है।”
स्थानीय नागरिकों में आक्रोश
थाना प्रभारी की इस मनमानी पर स्थानीय पर्यावरणविदों और जागरूक नागरिकों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है। लोगों का कहना है कि जब शासन खुद वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है, तो सरकारी परिसर में इस तरह की लापरवाही पर्यावरणीय नीति को मजाक बना देती है।
जांच और कार्रवाई की मांग
स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है और दोषियों के विरुद्ध वन अधिनियमों के तहत कठोर कार्रवाई की अपील की है।
यह प्रकरण न केवल एक पेड़ के कटाव का मामला है, बल्कि यह सरकार की पर्यावरणीय नीतियों और अधिकारियों की जवाबदेही पर गहरी चोट है। यदि अब भी इस पर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत हो सकती है, जिसमें सरकारी परिसर में खड़े पेड़ भी सुरक्षित नहीं रहेंगे।