गोरखपुर -डिंडौरी जिले के करंजिया विकासखंड अंतर्गत कस्बा गोरखपुर सहित अंचल में रविवार को हलषष्ठी का पर्व श्रद्घा व उत्साह के साथ विधिवत मनाया गया।इस पावन अवसर पर माताओं ने संतान की दीर्घायु के लिए व्रत धारण कर विधि-विधान से हलछठ की पूजा अर्चना की । माताओं ने सुबह स्नानादि आदि से निवृत होकर नित्यक्रम के बाद हलषष्ठी व्रत धारण करने का संकल्प उत्तराभिमुख होकर किया।मध्यांह काल में पलाश, कांस व कुश के नीचे भगवान शिव पार्वती, स्वामी कार्तिकेय व श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करके धूप दीप पुष्प आदि से भक्तिभाव से पूजन किया गया। महिलाओं ने बताया कि हलछठ की पूजा में महुआ, पसई के चांवल, चना, मक्का, ज्वार, सोयाबीन व धान की लाई व भैंस के दूध व गोबर का विशेष महत्व रहता हैं। हलछठ के दिन दोपहर में घर-आंगन में महुआ, बेर की डाल, कांस के फूल से हलछठ स्थापित कर श्रद्घाभाव से पूजा अर्चना की और सतगजरा सहित तेल, चूड़ी, काजल, लकड़ी की ककई, बांस टुकनिया, आईना छोटी-छोटी डबली, नारियल, केला, ककड़ी का प्रसाद चढ़ाया।
बताया गया कि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम के प्राकटयोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।इस दिन बलराम जी का जन्म हुआ था। भगवान बलराम का प्रमुख शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा। क्षेत्र में इस पर्व को हरछठ के नाम से पुकारा जाता है।दोपहर बाद कस्बा के अनेकों स्थानों पर माताओं ने विधिविधान से पूजा अराधना करते हुए भगवान से संतान की प्राप्ति तथा दीर्घायु व संपन्नता के लिए प्रार्थना किया। पूजन पश्चात माताओं ने प्रचलित कहानियां सुनी और कथा का वाचन किया। वहीं हलछठ पर्व के तहत बाजार में सुबह से दोपहर तक चहल-पहल रही। जबकि पूजा अर्चना के बाद उपवास रखने वाली माताओं ने महुआ की चाय व पसई के चांवल का सेवन किया। जबकि कन्याओं को बांस की टोकनी में लाई, नारियल, महुआ, चना, सोयाबीन, धान की लाई आदि प्रसाद के रूप में वितरण किया गया। इस अवसर पर सुबह से ही हरछठ व्रत के लिए पूजा की तैयारियां करते हुए महिलाओं को देखा गया।