गोरखपुर। शिक्षा व्यवस्था को लेकर शासन-प्रशासन लगातार सुधार की बातें करता है, मगर जमीनी हकीकत अक्सर इन दावों की पोल खोल देती है। ऐसा ही एक ताजा उदाहरण गुरुवार को सामने आया, जब अनुविभागीय अधिकारी (एसडीएम) बजाग श्री राम बाबू देवांगन के निर्देशन पर सुनपुरी हल्का पटवारी अक्षय कटारे ने बजाग विकासखंड के अंतर्गत प्राथमिक शाला सुनपुरी का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान जो तस्वीर सामने आई, उसने शिक्षा व्यवस्था की जर्जर हालत और लापरवाही को उजागर कर दिया।
– जर्जर भवन,खतरे के साए में बच्चे
प्राथमिक शाला सुनपुरी में वर्तमान में मात्र दो कमरे हैं। निरीक्षण में पाया गया कि इनमें से एक कमरा पूरी तरह उपयोग से बाहर है। उसकी सीलिंग और फर्श पूरी तरह से उखड़ी हुई है, जिस कारण वहां बच्चों का बैठना तो दूर, प्रवेश करना भी खतरनाक माना जा सकता है।
दूसरा कमरा ही एकमात्र सहारा है, लेकिन उसमें भी हालत ठीक नहीं है। बरामदे की छत का प्लास्टर झड़ चुका है और किसी भी समय गिर सकता है। यह स्थिति बच्चों और शिक्षकों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है।
– शिक्षा व्यवस्था पर सवाल,एक कमरे में सभी कक्षाएं
स्कूल में कक्षा पहली से पाँचवीं तक कुल 32 बच्चे दर्ज हैं। हैरानी की बात यह है कि सभी बच्चों को एक ही कमरे में बैठाकर पढ़ाया जाता है। विद्यालय में सिर्फ एक नियमित शिक्षक पदस्थ हैं, जिनके भरोसे ही कक्षा पहली से पाँचवीं तक की पढ़ाई चल रही है।
इस स्थिति में अलग-अलग कक्षाओं के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाना मुश्किल है। शिक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, एक ही कमरे और एक शिक्षक के सहारे पाँच कक्षाओं की पढ़ाई करना बच्चों के भविष्य के साथ गंभीर समझौता है।
मध्यान्ह भोजन योजना की अनदेखी
निरीक्षण के दौरान मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) को लेकर भी बड़ी लापरवाही सामने आई। बच्चों को निर्धारित मेन्यू के अनुसार भोजन नहीं दिया जा रहा है। योजना का मूल उद्देश्य बच्चों को पोषण देना और स्कूल से जोड़कर रखना है, लेकिन सुनपुरी प्राथमिक शाला में यह व्यवस्था सिर्फ नाम मात्र की रह गई है
गांव के अभिभावकों का कहना है कि बच्चों को अक्सर खाना ठीक से नहीं मिलता। कभी सब्जी नहीं होती, तो कभी दाल में गुणवत्ता की कमी रहती है। इससे न सिर्फ बच्चों का पोषण प्रभावित हो रहा है, बल्कि अभिभावकों का भरोसा भी घट रहा है।

शौचालय अनुपयोगी स्वच्छता पर संकट
निरीक्षण में पाया गया कि विद्यालय का शौचालय पूरी तरह अनुपयोगी है। बच्चे और शिक्षक खुले में शौच के लिए मजबूर हैं, जिससे स्वच्छता और स्वास्थ्य दोनों पर संकट मंडरा रहा है। आज जब सरकार “स्वच्छ भारत मिशन” जैसी योजनाओं को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करती है, तब एक सरकारी स्कूल में शौचालय का अनुपयोगी होना गंभीर सवाल खड़े करता है।
शिक्षा पर असर और बच्चों का भविष्य
सुनपुरी प्राथमिक शाला की वर्तमान स्थिति बच्चों के भविष्य के लिए चिंताजनक है। जर्जर भवन, अनुपयोगी शौचालय, मीनू में लापरवाही और शिक्षकों की कमी जैसी समस्याएं न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर भी खतरा बन चुकी हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि वे अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए स्कूल भेजते हैं, लेकिन जब वहां न तो सुरक्षित भवन है और न ही मूलभूत सुविधाएं, तो बच्चे पढ़ाई से विमुख हो जाते हैं।
प्रशासन की जिम्मेदारी और अपेक्षाएं
एसडीएम के निर्देशन पर हुए इस निरीक्षण से यह साफ हो गया है कि शिक्षा विभाग स्तर पर गंभीर लापरवाही बरती जा रही है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाता है।
– शिक्षा विभाग को चाहिए कि जर्जर भवन की तत्काल मरम्मत कर बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
– अनुपयोगी शौचालय को दुरुस्त कर स्वच्छता व्यवस्था लागू करे।
– मध्याह्न भोजन योजना में पारदर्शिता लाकर बच्चों को मेन्यू के अनुसार पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराए।
– अतिरिक्त शिक्षकों की पदस्थापना कर बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए।







