शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 5 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी राज्य की है, लेकिन सरकार जिम्मेदारी से बेखबर हैं जिसके चलते पढ़ने लिखने की उम्र में मासूम बच्चे भिक्षा मांग कर जीवन यापन करने पर मजबूर हैं।
डिंडौरी। समाज में शिक्षा और विकास की मुख्यधारा से जुड़ने से पहले ही मासूम बच्चों का भविष्य अंधेरे में खोता जा रहा है। मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले में पढ़ने-लिखने की उम्र के कई बच्चे सड़कों, चौराहों और होटलों के आसपास भीख मांगते नजर आते हैं। इस गंभीर समस्या को लेकर संजीवनी सामाजिक जनकल्याण संस्था, शहपुरा ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर ठोस कार्रवाई की मांग की है।
संस्था के संस्था प्रमुख मुकेश कुमार अग्रवाल ने बताया कि शहपुरा, समनापुर, करंजिया, बजाग सहित जिला मुख्यालय में रोजाना ऐसे नजारे देखने को मिलते हैं, जहाँ मासूम बच्चे हाथ फैलाए लोगों से भीख मांगते हैं। संस्था का कहना है कि यह स्थिति केवल बच्चों का बचपन छीन रही है, बल्कि कई बार भीख में मिली रकम से वे नशे की लत का शिकार भी हो जाते हैं, जिससे उनका भविष्य पूरी तरह बर्बाद होने का खतरा बढ़ जाता है।
संजीवनी संस्था ने कहा कि सरकार बच्चों की शिक्षा और भरण-पोषण के लिए ‘स्कूल चले हम’ अभियान, मध्यान्ह भोजन योजना, आवास योजना, मुफ्त राशन वितरण, लाडली बहना योजना और पेंशन योजनाएं जैसी अनेक योजनाएँ चला रही है, लेकिन उनका लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पा रहा। यही कारण है कि इतनी योजनाओं के बावजूद मासूम बच्चे आज भीख मांगने को मजबूर हैं।
संस्था ने सुझाव दिया कि ऐसे बच्चों को चिह्नित कर योजनाओं से जोड़ा जाए और उनकी शिक्षा सुनिश्चित की जाए। इसके लिए ग्राम पंचायत सचिव, सरपंच, रोजगार सहायक, जनपद सीईओ, विकासखंड शिक्षा अधिकारी और जनशिक्षकों को जवाबदेह बनाया जाए।
संस्था ने आशंका जताई कि यह स्थिति जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही और योजनाओं के केवल कागजों तक सीमित रहने का परिणाम है। संस्था ने जिला प्रशासन से मांग की है कि वह इस मामले में तत्काल संज्ञान ले और ठोस कदम उठाए, ताकि इन बच्चों को शिक्षा से जोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके और उनका भविष्य सुरक्षित बनाया जा सके।