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डिंडौरी जिले में औषधीय हर्रा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, वन विभाग मौन वन संपदा पर संकट

akvlive.in

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डिंडौरी न्यूज । डिंडौरी जिले के बजाग वन परिक्षेत्र अंतर्गत शीतलपानी के जंगलों के कक्ष क्रमांक 523त, 524/507 सहित जिले के अन्य जंगल क्षेत्रों में विगत एक माह से हर्रा (हरड़) पेड़ों की व्यापक कटाई की जा रही है। ग्रामीणों द्वारा वनोपज एकत्र करने की आड़ में औषधीय महत्व रखने वाले इन पेड़ों की टहनियों को बेरहमी से काटा जा रहा है। कई स्थानों पर तो पेड़ों को जड़ से ही काट दिया गया है, जिससे आने वाले वर्षों तक इनमें फल लगना संभव नहीं होगा। यह न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से घातक है, बल्कि वन संपदा पर एक गंभीर हमला भी है।
हर वर्ष जारी है दोहराव, विभाग चुप
ज्ञात हो कि वर्ष 2009 में भी जिले के वन क्षेत्रों में लगभग 10 से 15 हजार हर्रा पेड़ काटे गए थे। तब से लेकर आज तक हर वर्ष सैकड़ों पेड़ों का इसी तरह से विनाश किया जा रहा है, लेकिन वन विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। यह विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। जंगलों में कानून व्यवस्था पूरी तरह से लुप्त होती नजर आ रही है।
प्राकृतिक विधि से भी हो सकता है फल संग्रहण
यह उल्लेखनीय है कि हर्रा फल का संग्रहण बिना पेड़ को नुकसान पहुंचाए भी संभव है। कई जागरूक ग्रामीण लंबे बांस की सहायता से डंडे के सिरे पर फंदा बांधकर फलों को खींचकर तोड़ते हैं और एक ही सीजन में 20 से 25 हजार रुपये तक का औषधीय फल बेचते हैं। बावजूद इसके, कुछ लालची लोग तत्काल लाभ की चाह में पेड़ों को काट रहे हैं, जो दीर्घकालिक नुकसान का कारण बन रहा है।
वन संपदा और भविष्य खतरे में
औषधीय गुणों से भरपूर हर्रा पेड़ न केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोगी हैं, बल्कि ग्रामीणों के लिए आय का स्रोत भी हैं। इन पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से आने वाली पीढ़ियों को न केवल औषधीय वनस्पतियों से वंचित रहना पड़ेगा, बल्कि क्षेत्र की जैव विविधता पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।
मांग: कठोर कार्रवाई और जनजागरूकता जरूरी
वन संरक्षण के लिए लंबे समय से सक्रिय अरविंद बाबा का कहना है कि अब समय आ गया है कि वन विभाग इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करे। जंगल क्षेत्रों में निगरानी बढ़ाई जाए, वन अपराधियों की पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। साथ ही ग्रामीणों को वैकल्पिक, पर्यावरण-अनुकूल फल संग्रहण विधियों के प्रति जागरूक किया जाए।
यदि वन विभाग समय रहते कार्रवाई नहीं करता, तो आने वाले वर्षों में यह संकट विकराल रूप ले सकता है और डिंडौरी जिले की बहुमूल्य वन संपदा सदा के लिए लुप्त हो सकती है।