जबलपुर । मध्यप्रदेश में सरकारी विभागों द्वारा आउटसोर्सिंग के माध्यम से की जा रही भर्तियों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। अजाक्स संघ ने इस प्रणाली की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका क्रमांक WP/15917/2025 में संघ ने दावा किया है कि प्रदेश सरकार द्वारा श्रमिकों की भर्ती का जो तरीका अपनाया जा रहा है, वह “मानव तस्करी” जैसा है और पूरी तरह असंवैधानिक व अमानवीय है।
अजाक्स संघ ने अपनी याचिका में मध्यप्रदेश भंडारण, क्रय तथा सेवा उपार्जन नियम 2015 के नियम 32 के संशोधन को चुनौती दी है, जिसमें प्रावधान है कि सरकारी विभाग विशिष्ट कार्यों के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की सेवाएं आउटसोर्स एजेंसियों से खरीद सकते हैं। यह संशोधन 31 मार्च 2022 को वित्त विभाग द्वारा किया गया था, और 31 मार्च 2023 को अधिसूचना क्रमांक F-11/2023/नियम/चार के तहत प्रदेश के सभी विभागों को भेजा गया।
संघ का कहना है कि इस प्रणाली के तहत श्रमिकों को वस्तुओं की तरह एजेंसियों से खरीदा जाता है और उन्हें किसी भी तरह का विधिक संरक्षण प्राप्त नहीं होता। सरकारी विभाग इन कर्मचारियों को नियुक्त कर उनके साथ एजेंसी के माध्यम से मनमानी करते हैं, जिससे श्रमिकों को कभी भी बिना सूचना के नौकरी से निकाला जा सकता है। उन्हें निर्धारित न्यूनतम वेतन, आरक्षण या सेवा सुरक्षा का लाभ भी नहीं मिलता।
संघ ने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन देकर इस नीति को वापस लेने की मांग की है। ज्ञापन में कहा गया है कि प्रदेश के हर विभाग में कर्मचारियों का स्वीकृत सेटअप, वेतनमान और आरक्षण तय है, फिर भी वित्त विभाग द्वारा लागू की गई यह अधिसूचना न केवल श्रमिक कानूनों बल्कि संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती है।
अजाक्स संघ ने याचिका में यह भी रेखांकित किया है कि पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं का शोषण इन एजेंसियों द्वारा किया जा रहा है, जो उन्हें कम वेतन पर अस्थाई और असुरक्षित रोजगार देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों के भी विपरीत है।
उक्त जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई आगामी 05 मई 2025 को तय की गई है। इस मुद्दे पर प्रदेशभर में चर्चा और बहस तेज होती जा रही है, और अनेक सामाजिक संगठनों ने भी आउटसोर्सिंग नीति को वापस लेने की मांग उठाई है।