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फर्जी लोन घोटाला: आदिवासी युवती के नाम पर 8 लाख का लोन, बैंक मैनेजर और दलाल की साजिश से उजागर हुआ बड़ा खेल

डिंडौरी न्यूज  ।  “जब खुद चोरी करो, तो सबसे पहले चिल्लाओ – चोरी हुई, चोरी हुई!” ये कहावत तहसील मुख्यालय बजाग के ...

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Chetram Rajpoot

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डिंडौरी न्यूज  ।  “जब खुद चोरी करो, तो सबसे पहले चिल्लाओ – चोरी हुई, चोरी हुई!” ये कहावत तहसील मुख्यालय बजाग के सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शाखा में सामने आए फर्जी लोन घोटाले पर पूरी तरह सटीक बैठती है। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना जैसी लाभकारी योजना को बदनाम करने का यह मामला बैंक अधिकारी और स्थानीय दलाल की मिलीभगत का जीवंत उदाहरण बन चुका है।
घटना वर्ष 2023 की है, जब राजेश्वरी मरावी नामक आदिवासी युवती ने प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत ऑनलाइन आवेदन कर प्रशिक्षण लिया। योजना का उद्देश्य युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराना था, लेकिन जब लोन की स्वीकृति का समय आया, तभी से भ्रष्ट तंत्र सक्रिय हो गया। पीड़िता का आरोप है कि सेंट्रल बैंक बजाग के बैंक मैनेजर ने लोन स्वीकृति के एवज में ₹3.5 लाख की मांग की, जिसमें ₹2 लाख देने की बात सामने आई है।
शुरू से ही इस पूरी प्रक्रिया में संतोष परस्ते नामक दलाल की भूमिका संदिग्ध रही, जो मानगढ़ का निवासी है और आवेदिका तथा बैंक अधिकारी के बीच लगातार संपर्क में रहा। इस साजिश की एक गंभीर कड़ी तब सामने आई जब लोन के सत्यापन के नाम पर किसी और की दुकान की तस्वीर खींचकर उसे आवेदिका की दुकान बताकर बैंक द्वारा स्वीकृति दी गई।
धोखा और जालसाजी का ऐसा तंत्र कि आवेदिका को लोन मिलने की खबर भी नहीं हुई!
लोन की संपूर्ण राशि ₹8 लाख सीधे किसी दुकानदार के खाते में ट्रांसफर हो गई। पीड़िता को न तो व्यवसाय शुरू करने की सामग्री मिली, न ही कोई वित्तीय सहायता। उल्टा उसे लोन की किस्तें भरने का दबाव बनने लगा।
मामला तब सामने आया जब किश्तों का भुगतान नहीं होने पर बैंक मैनेजर ने स्वयं थाने में शिकायत दर्ज कराई। इस दौरान आवेदिका ने सच्चाई सामने रखी और बताया कि उसे न तो लोन की राशि की जानकारी थी, न ही वह इसका लाभार्थी बन सकी। इस खुलासे ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी।
सूत्रों की मानें तो संतोष परस्ते वर्षों से क्षेत्र में लोन दलाली का धंधा कर रहा है और कई बैंक अधिकारियों से उसके करीबी संबंध हैं। गरीब और आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार के नाम पर फंसाना उसका मुख्य जरिया रहा है। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह अकेला मामला है, या इसी तरह और कितनों को योजनाओं के नाम पर ठगा गया है?
थाना प्रभारी के अधीन चल रही जांच में यह स्पष्ट होगा कि—
– बैंक मैनेजर की भूमिका कितनी गहरी है?
– दलाल संतोष परस्ते के और किन-किन बैंक अधिकारियों से संबंध हैं?
– कितने और युवा इस गिरोह के शिकार हुए हैं?
यह मामला सिर्फ एक आदिवासी युवती की ठगी तक सीमित नहीं, बल्कि यह शासन की कल्याणकारी योजनाओं में सेंध लगाने वाला ऐसा बड़ा उदाहरण है, जो पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करता है। प्रशासन और पुलिस की जिम्मेदारी अब यह सुनिश्चित करने की है कि जांच निष्पक्ष हो और दोषियों को कठोर सजा मिले। कहीं ऐसा न हो कि यह मामला भी शोर-शराबे में दफ्न हो जाए, और आदिवासी युवा एक बार फिर भरोसा खो दें सरकारी योजनाओं पर।
RNVLive

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