डिंडौरी मध्यप्रदेश

स्थापना के 24 वर्षों बाद भी शिक्षा,स्वास्थ, रोजगार और सिंचाई व्यवस्था में पिछड़ा जिला

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डिंडौरी जिले के स्थापना के 24 वर्ष पूर्ण
– जिले के स्थापना के 24 वर्षो बाद भी मूलभूत सुविधाओं को मोहताज जिलेवासी

डिंडौरी। आज का दिन डिंडौरी के पहचान और तरक्की के लिए ऐतेहासिक दिन हैं,डिंडौरी की पहचान 25 मई 1998 से पहले मंडला जिले के एक तहसील के तौर पर होती थी,डिंडौरी को जिला बनाने की मांग लंबे समय से जनप्रतिनिधि और आमजन कर रहे थे, जन भावनाओं और विकास को दृष्टिगत रखते हुए कांग्रेस के शासन काल में सीएम दिग्विजयसिंह ने मंडला से डिंडौरी को पृथक करते हुए 25 मई 1998 को जिला घोषित किया था,साथ ही सात जनपद पंचायतों की स्थापना की गई थी जिससे जिले के वाशिंदों को मूलभूत सुविधाओं सहित तेज रफ्तार से विकास करने का अवसर प्राप्त हुआ है। बताया गया कि जिले के स्थापना के दौरान एक छोटे से भवन में कलेक्टर कार्यालय संचालित किया जा रहा था, कलेक्टर के तौर पर पहली पदस्थापना आईएएस सीएल अड़मे की हुई थी और उस दौरान जिले के प्रभारी मंत्री स्व.बसोरी सिंह मसराम को बनाया गया था। जिले के स्थापना की 24 वर्षो में विकास और संसाधनों के निर्माण के साथ ही आमजनो को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने में शाशन प्रशासन का प्रयास काफी हद तक सराहनीय कहा जा सकता है,डिंडौरी की भौगोलिक परिस्थितियां भी एक तरह से लोगों के लिए मुसीबत का सबब बनती हैं, वही अगर जिले के विकास के लिए प्रशासन और तमाम विभागों के द्वारा किये गए कार्यों और प्रशासनिक कागजी आकड़ो की बात करें तो दोनों की सच्चाई जुदा-जुदा हैं,जानकर बताते हैं कि डिंडौरी के विकास के लिए सरकार के द्वारा विभिन्न कार्यो और वर्गों को लक्षित कर पानी की तरह पैसा बहाया गया,उस अनुपात में जिले और जनता का विकास नही हुआ है,विकास कार्यो और विभिन्न योजना परियोजनाओं के लिए आवंटित राशि उच्च स्तरीय मिलीभगत से भृष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में पिछड़ा जिला
जिले में शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए विद्यालय और आश्रम /छात्रवास भवनों के निर्माण में बड़े पैमाने पर सरकार के द्वारा सतत रूप से राशि व्यय की जा रही हैं किंतु भवन तय समय से पहले ही जर्जर हो जाते हैं,जिससे कई स्कूलो के संचालन में रुकावट पैदा होती हैं,वही सरकारी स्कूलों में दिनों दिन गिरती शिक्षा स्तर से बच्चों और एक वर्ग का मोहभंग हो रहा है,जिसके चलते विगत 2-4 वर्षों में सैकड़ों की संख्या में सरकारी स्कूल बंद किये गए हैं। वही हायर सेकंडरी शिक्षा के बाद व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था नही होने के चलते विद्यार्थियों को अन्य शहरों की ओर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता हैं या वह जिले में ही संचालित महाविद्यालयों में औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं।
पलायन का दंश झेल रहे जिलेवासी
आदिवासी बहुल डिंडौरी जिले की एक बड़ी आबादी रोजगार के लिए महानगरों की पलायन करने पर मजबूर हैं, यूं तो मनरेगा में प्रत्येक जॉबकार्ड धारी परिवार को 100 दिवस रोजगार की गारंटी है किंतु एक वर्ष में 100 दिन के रोजगार में परिवार का गुजारा असंभव है जिसके चलते युवाओं के साथ ही नाबालिग बच्चे और लड़किया भी परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी निभाने के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं ।स्वास्थ और सिंचाई व्यवस्था में फिसड्डी डिंडौरी जिला
केंद्र और राज्य सरकार के पहली प्राथमिकता में स्वास्थ्य व्यवस्था हैं, आमजनों को समय पर समुचित ईलाज मिले इस हेतु जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर ढांचागत निर्माण कर एवं आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराते हुए पद स्वीकृत किये गए हैं,किन्तु डिंडौरी को जिला बने 24 वर्ष पूर्ण हो गए लेकिन स्वीकृत पदों में विशेषज्ञ चिकित्सको कि पदस्थापना आज तक नही हुई, जिससे छोटी छोटी बीमारियों के ईलाज के लिए जिले वासियों को जबलपुर, नागपुर, बिलासपुर का सफर तय करना होता हैं, जिला अस्पताल डिंडौरी में प्रथम श्रेणी विशेषज्ञ चिकित्सको की स्वीकृत 30 पदों में महज 02 चिकित्सक और द्वितीय श्रेणी के स्वीकृत 23 पदों के विरूद्ध महज 5 चिकित्सक पदस्थ हैं, इससे जिले की स्वास्थ्य सेवाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का केंद्रीय राज्यमंत्री बनाया गया था किंतु उन्होंने भी विशेषज्ञ डॉक्टर भेजने में कोई रुचि नहीं ली,जिसके चलते जिले का स्वास्थ्य व्यवस्था स्वयं आईसीयू में हैं। राज्य सरकार के द्वारा राष्ट्रीय पर्वो पर सूबे सहित डिंडौरी में सिंचाई का रकबा बढ़ाने के बड़े बड़े दावे किए जाते हैं, डिंडोरी के जल संशाधन विभाग की माने तो जिले में लगभग 36000 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि में विभाग द्वारा कराए गए निर्माण कार्यो से सिंचाई हो रही हैं जबकि हकीकत यह है कि 3600 हेक्टेयर कृषि भूमि की भी सिचाई नही हो रही हैं।

उच्च शिक्षा केंद्र और औद्योगिक विकास की जरूरत
क्षेत्रीय विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने बताया कि आदिवासी बहुल जिला डिंडौरी में लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर है जिसके चलते उच्च शिक्षा के लिए प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अध्ययन का अवसर नहीं मिलता है, जिससे प्रतिभाओं को निखरने का मौका नहीं मिलता है और वह अंधेरे में ही गुमनाम हो जाते हैं।

डिंडौरी के युवाओं में खेल प्रतिभा ,आर्मी के लिए मापदंड,कलाकारी और संगीत में जौहर दिखाने के लिए अद्भुत क्षमता है किंतु अवसर नही मिलने से उन्हें प्रदर्शन का मौका नही मिलता है। सरकार को जिले में खेल विद्यालय, संगीत विद्यालय, और चिकित्सा और कानून महाविद्यालय संचालित करना चाहिए जिससे आर्थिक कमजोरी से जूझ रहे प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर मिल सके। वही प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू और व्यवस्थित संचालित करने के लिए पदों की पूर्ति किया जाना चाहिए।

भाजपा सरकार की नीतियों से हुआ जिले का विकास
डिंडौरी के उभरते हुए नेतृत नगर परिषद अध्यक्ष पंकज सिंह तेकाम ने कहा कि डिंडौरी जिले कि विकास स्थापना के बाद से ही तेज गति से हुआ है, उन्होंने कहा कि जिस समय डिंडौरी को जिला घोषित किया गया था उस दौरान सड़को की हालात खराब थी,अनेको गांव बिजली और पहुंच विहीन थे,मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद जिले का तेजी से विकास हुआ है,

सरकार की नीतियों और प्रोत्साहन योजना के चलते शिक्षा का स्तर बढ़ा है, भाजपा सरकार डिंडौरी के चहुमुखी विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं, उन्होंने बताया कि डिंडौरी नगर परिषद विकास मामलों में पूरे मध्यप्रदेश में अव्वल हैं, विगत 5 वर्षों में नपा के द्वारा लगभग 300 करोड़ रुपये व्यय कर विकास कार्य कराए गए हैं।

 

 

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