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कटघोरा वनमंडल की जमीन का हो रहा खुला लूट, हरे- भरे वृक्षों की अंधाधुन कटाई कर मकान, दुकान का निर्माण कराकर जा रहा बेचा, विभाग के मौनवृत्ति से भू माफियाओं के हौसले बुलंद

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कोरबा ::- रितेश गुप्ता

कटघोरा वनमंडल की जमीन का हो रहा खुला लूट, हरे- भरे वृक्षों की अंधाधुन कटाई कर मकान, दुकान का निर्माण कराकर जा रहा बेचा, विभाग के मौनवृत्ति से भू माफियाओं के हौसले बुलंद


*कोरबा/कटघोरा:-* कटघोरा वनमंडल में बीते कुछ वर्षों से बेजा कब्जाधारी भू माफियाओं द्वारा जंगल उजाड कर वनभूमि पर तेजी से कब्जा करते हुए मकान, दुकान का निर्माण कराकर उसे बेचने का कार्य किया जा रहा है जिससे वनक्षेत्र के पूरे जंगल जमीन का सत्यनाश हो रहा है और प्राकृतिक जंगल जमीन का रकबा धीरे- धीरे कर कम होता चला जा रहा है।

भू माफियाओं की हिमाकत खुली नजरों से स्पष्ट दिखने के बाद भी पर्यावरण की दिखावटी चिंता मात्र करने वाले वनमंडलाधिकारी व उनके मातहम अधिकारी कार्यवाही करने के बजाय पंगु बने बैठे है।

देखने मे आ रहा है कि बीते दो वर्ष के अंतराल में वनमंडल कटघोरा के परिक्षेत्र जटगा, केंदई एवं कटघोरा वनभूमि पर भू माफियाओं की नजर गड़ी हुई है और वे साल के जंगलों का तेजी से सफाया कर लंबे- चौड़े वनभूमि पर मकान, दुकान का निर्माण कराकर बेचने का गोरखधंधा कर रहे है

जहां जटगा वनपरिक्षेत्र के सुतर्रा सर्किल अंतर्गत लखनपुर- बांकीमोंगरा मुख्यमार्ग किनारे तकरीबन 3- 4 एकड़ तो कटघोरा परिक्षेत्र के जवाली मुख्यमार्ग पर लगभग 50 एकड़ तथा केंदई परिक्षेत्र में मोरगा हाइवे मार्ग किनारे 6 से 7 एकड़ वनभूमि पर जमीन माफियाओं ने कब्जा कर लिया है तथा निर्माण कार्य कर तेजी से खरीद- बिक्री में लगे हुए है।

बता दें कि साल का वृक्ष आदिवासियों के लिए कल्प वृक्ष के अलावा छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष भी है जिसे सरई भी कहा जाता है।


साल के वृक्ष से आधा दर्जन से ज्यादा उत्पाद मिलते है। साल का पेड़ करीब पांच सौ साल तक जीवित रहने वाला वृक्ष है और इससे इमारती व जलाऊ लकड़ी, बीज, धूप, के साथ दोना- पत्तल बनाने के लिए उपयोगी पत्ते व दातुन सहित कई तरह की औषधियां मिलती है।

साल वृक्ष के ही नीचे एक विशेष तरह का मशरूम मिलता है जिसे बोड़ा कहा जाता है जो शहरों में 2 से 3 सौ रुपए प्रतिकिलो तक बिकता है और जिसकी सब्जी राजसी मानी जाती है।

यह इतना उपयोगी वृक्ष है कि जिस व्यक्ति की निजी भूमि पर होता है वह गौरवान्वित महसूस करता है लेकिन कटघोरा वनमंडल के वनमंडलाधिकारी एवं उनके शीर्ष अधिकारियों को उसी साल वृक्ष के संरक्षण की कोई परवाह नही है

साथ ही वनभूमि पर हो रहे बेतहाशा कब्जे से कम हो रहे वन रकबे को लेकर भी गंभीर नही है और विडंबना यह है कि आहिस्ते- आहिस्ते जंगल खत्म हो रहे है।

साल के पौधे नैसर्गिक रूप से उगते है लेकिन बीते एक दशक में साल के लाखों पेड़ अवैध रूप से वन माफियाओं द्वारा काटे जा चुके है।

विभाग तो प्रतिवर्ष पौधारोपण की बात कहता है किंतु कागजों में हो रहे अधिकतर रोपण के परिणाम की उम्मीद बेमानी सी लगती है

और वन नौकरशाह क्यों सारी गलतियों को छुपाने में लगे रहते है। यदि इसी तरह जंगल का उजाड़ कार्य होता रहा और रकबा घटता रहा तो जंगली जानवरों के गांव, शहरों की ओर आने का क्रम तेजी से बढ़ेगा साथ ही आने वाले पीढ़ियों को इसका भयंकर खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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