Dindori News, डिंडौरी न्यूज। डिंडौरी ज़िले के समनापुर विकास खंड अंतर्गत सरकारी स्कूलों में पदस्थ कुछ शिक्षको द्वारा सहायक अध्यापक से अध्यापक एवं संविदा शाला शिक्षक के पद से सहायक अध्यापक संवर्ग में संविलियन कराने के लिए माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा जारी डीएड डिप्लोमा के फॉर्मेट में छेड़छाड़ कूटरचना करते हुए अपना नाम दर्ज कर मंडल द्वारा जारी प्रमाण पत्रों से हूबहू मिलते जुलते प्रमाणपत्र बनवा कर लाभ लेने का बहुचर्चित मामला सामने आया था।
दरअसल ऐसे शिक्षाकर्मी जिन्होंने एनसीटीई द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार शिक्षण प्रशिक्षण बीएड/डीएड की उपाधि प्राप्त नहीं किया था, उन्हें उपाधि/पत्रोपधि के उपरांत ही अध्यापक संवर्ग में अगली वेतनवृद्धि स्वीकृत करने के आदेश थे, ऐसे मामलों में शिक्षण प्रशिक्षण करने पर छूटी हुई वेतनवृद्धि जारी करने लेकिन उपाधि के पूर्व अवधि की एरियर्स की पात्रता लाभ नहीं देने का प्रावधान था, अप्रशिक्षित शिक्षकों को शिक्षण प्रशिक्षण हेतु एक बार सवैतनिक अवकाश स्वीकृत करने के आदेश मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल द्वारा जारी किया गया था।

उक्त प्रावधानों का लाभ लेने के लिए शासन की आंखों में धूल झोंककर कई शिक्षकों ने शिक्षण प्रशिक्षण की उपाधि प्राप्त करने की बजाय हजारों रुपए व्यय कर कूटरचित तरीके से फर्जी डिग्री डिप्लोमा बनवा कर वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश करते हुए अध्यापक संवर्ग में संविलियन कराते हुए वेतन वृद्धि समेत एरियर्स का लाखों रुपए भुगतान प्राप्त किया गया था , जब फर्जीवाड़े की शिकायत हुई तो फर्जीवाड़े का बड़ा रैकेट पकड़ाया, अनेकों शिक्षक फर्जी प्रमाण पत्र सहित पकड़े गए, कई फर्जी शिक्षकों ने फर्जीवाड़े की जांच में नाम आते ही ऊपर ही ऊपर जांच अधिकारी को चढ़ोत्तरी चढ़ा स्वयं को बचाने में सफल हुए… वहीं विवेचना अधिकारी उप निरीक्षक अनुराग जामदार ने जांच का दायरा बढ़ाने की वजाय समेटते हुए विवेचना और चार्ज सीट में इतना झोल झाल कर दिया कि न्यायालय प्रथम अपर सत्र न्यायधीश डिंडौरी द्वारा आदेश पारित कर विवेचक /उपनिरीक्षक के विरुद्ध कार्यवाही करने का आदेश डीजीपी को प्रेषित करने के निर्देश दिनांक 19/09/24 को जारी किया गया है।
– न्यायालय और पुलिस की अलग – अलग भूमिका तय..
न्यायालय और पुलिस कानून व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं,कानून में पुलिस और न्यायालय की भूमिका अलग अलग तय है, कानून के पहरेदार पुलिसिया तंत्र अपराध की सूचना पर जांच/विवेचना और पुख्ता साक्ष्य जुटा कर अपराध में लिप्त आरोपियों को सजा दिलाने का काम करती हैं, अपराधों की जांच में यदि कोई अपराध साबित होता है तो संबंधित मामलों के विवेचक द्वारा आरोप पत्र (चार्ज सीट)अदालत में प्रस्तुत किया जाता है जिससे अभियुक्तों को कानून के तहत न्यायालय द्वारा दंडित किया जा सके….. लेकिन जब कानून के पहरेदार जांच अधिकारी स्वयं ही कर्तव्यों और कानूनी न्यायिक सिद्धांतों को किनारे करते हुए अभियुक्तों के विरुद्ध मात्र मामला दर्ज करने के बाद साक्ष्य, घटित अपराधों की पुष्टि हेतु पुख्ता साक्ष्य जुटाने में हीलाहवाली करेंगे तो निश्चित ही अपराधी न्यायालय से बरी हो जाएंगे…आरोपो को न्यायालय में साबित करना महत्वपूर्ण है, लेकिन जब जांच अधिकारी कर्तव्यों को दरकिनार कर निजी स्वार्थ को आगे रखते हुए आरोपियों को बचाने के लिए चार्जशीट में पुख्ता साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करेंगें तो आखिरकार न्यायालय किन तथ्यों के आधार पर फैसला पारित करेगा… जांच अधिकारी द्वारा साक्ष्य और तथ्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, उन्हीं तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्तों की सजा या दोषमुक्ति तय होती हैं।
आरोपियों पर आरोप सिद्ध करने का पूरा जिम्मा अभियोजन पक्ष की होता हैं,, अपराधों की जांच में लिप्त आरोपियों को साक्ष्य मिलने के बाद भी आरोपी न बनाते हुए उन्हें सरकारी गवाह बनाया जाता है तो यह विवेचक (IO) द्वारा कानूनी सिद्धांतों का खुला उल्लंघन माना जा सकता है, ऐसे अधिकारियों को पुलिस महकमा द्वारा नए सिरे से कानूनी प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है..?
– कानूनी सिद्धांतों के विरुद्ध आरोपियों को बनाया गवाह..?
आरक्षी केंद्र समनापुर में दर्ज अपराध क्रमांक 95/2018 के अंतर्गत 05 आरोपितों के विरुद्ध धारा 420,467,468,471,34 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया था, दरअसल कुछ शिक्षकों पर आरोप था कि फर्जी डीएड डिप्लोमा के जरिए उन्होंने अध्यापक संवर्ग में संविलियन वेतन वृद्धि समेत लाखों रुपए एरियर्स राशि प्राप्त किया गया है। फर्जी डीएड डिप्लोमा बनाने तथा बनवाने वालों को गिरफ्तार करते हुए अन्वेषणकर्ता उपनिरीक्षक अनुराग जामदार द्वारा कूटरचना में प्रयुक्त कंप्यूटर जप्त किया गया था, एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार सरकारी शिक्षक अजमेर दास, बहादुर सिंह, संतु मरकाम, सज्जन सिंह धुर्वे, के डीएड की अंकसूची समेत मुकेश द्विवेदी के नाम की बीए की अंकसूची पाई गई थी, साथ ही दस्तावेज एडिट करने वाला एप्लिकेशन भी मिला था। सजन सिंह धुर्वे से उसकी डीएड की फर्जी मूल अंकसूची जप्त किया गया था, मामलें में विवेचक रहे उपनिरीक्षक अनुराग जामदार द्वारा पैसे के बलबूते कूटरचित डिप्लोमा बनवाने वाले शिक्षकों के विरुद्ध पुख्ता साक्ष्य मिलने के बावजूद सज्जन सिंह और बहादुर सिंह के विरुद्ध धारा 471 एवं 468 के तहत अपराध कायम करने की बजाय इन्हें सरकारी गवाह बनाया गया था, जिसमें न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि अंकसूची एक ऐसा दस्तावेज हैं, जिसका उपयोग किसी दावे को करने के लिए किया जाना ही आशयित रहता है। दस्तावेज का उपयोग किया जाना कुटरचना के लिए आवश्यक नहीं हैं, न्यायालय ने उत्तरप्रदेश राज्य विरुद्ध रंजीत सिंह एआईआर 1999 एससी 1201 का दृष्टांत देते हुए विवेचना अधिकारी के कार्यशैली पर कई प्रश्न उठाए हैं।

– अन्वेषणकर्ता ने उत्तरदायी अधिकारियों का कथन ही नहीं लिया जिससे विभाग के साथ छल और धोखाधड़ी साबित हो ..?
भा.द.सं. की धारा 420 एवं 471 के अधीन दण्डनीय अपराध के आरोप हैं, तो अभियोजन की ओर से अभियुक्त अजमेरदास, आरती मोंगरे एवं संतू सिंह की पदोन्नति के आदेश प्र.पी.47 सी. प्र.पी.49 सी. प्र.पी.51 सी तथा शासन का यह आदेश (प्र.पी.66 लगायत प्र.पी.68) कि संविदा शाला शिक्षक से सहायक अध्यापक संवर्ग हेतु बी.एड., डी.एड. की डिग्री आवश्यक है, परंतु अन्वेषणकर्ता ने शिक्षा विभाग के पदोन्नत्तिकर्ता या उत्तरदायी ऐसे अधिकारी का कोई कथन लेखबद्ध नहीं किया, जिससे यह दर्शित हो कि उक्त अभियुक्तगण ने डी.एड. की फर्जी अंकसूची ऐसे अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की है और उसी फर्जी अंकसूची के आधार पर उनका संविलियन / पदोन्नति हुई है, इसलिये यह साबित नहीं होता है कि उक्त अभियुक्तगण ने विभाग के साथ कोई छल किया है या कूटकृत अंकसूची को जानते हुए असली के रूप में प्रयोग किया है। इसी प्रकार अंकसूची मूल्यवान् प्रतिभूति नहीं होती है, इसलिये भा.द.सं. की धारा 467, 420, 471 या 120-बी/467, 420 एवं 471 के अपराध का गठन नहीं होता। कूटरचना करने वाले कंप्यूटर में एडिट एप्लिकेशन में जिन शिक्षकों के फर्जी डीएड डिप्लोमा के प्रति मिले उन्हें सरकारी गवाह बनाया गया वही जिन आरोपित शिक्षकों द्वारा फर्जी डीएड प्रमाण पत्रों के जरिए पदोन्नति प्राप्त की गई उनके दस्तावेजो का सत्यापन माध्यमिक शिक्षा मंडल से नहीं कराया गया है, न ही संविलयन प्रक्रिया में उत्तरदायी जिला स्तरीय छानबीन समिति, जनपद सीईओ के बयान ही दर्ज नहीं किया गया था, जिससे न्यायालय द्वारा साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी किया गया है, इस तरह से जांच अधिकारी चाहे तो विवेचना में पद अधिकार और जिम्मेदारियों की दुकानदारी कर कानून से खिलवाड़ करते हुए व्यवस्था का मजाक उड़ा सकते हैं।
– प्रथम अपर सत्र न्यायधीश ने उपनिरीक्षक के विरुद्ध कार्यवाही करने डीजीपी को दिए आदेश
विवेचक उपनिरीक्षकअनुराग जामदार द्वारा पंचनामा के अनुसार अभियुक्त अजमेरदास की फर्जी अंकसूची जप्त करना बताया, परंतु उसने अपने साक्ष्य में फर्जी डिप्लोमा की फोटोकॉपी जप्त करना बताया, इस प्रकार इस साक्षी उपनिरीक्षक जामदार ने स्वयं के द्वारा तैयार अभिलेख प्र.पी.02 के असंगत साक्ष्य दिया है। इस साक्षी ने अभियुक्त संतू सिंह, आरती मोंगरे, सजन सिंह, बहादुर सिंह तथा अभियुक्त देवेन्द्र के कम्प्यूटर में पाई गयी अभियुक्त मुकेश द्विवेदो की बी.ए. की अंकसूची की जांच नहीं करायी और जो संदिग्ध अंकसूचियों की छायाप्रतियां जप्त की गयी, उनकी असली अंकसूचियां जप्त करने का प्रयास नहीं किया तथा संदिग्ध छायाप्रतियां जारी करने वाली संस्थाओं से सत्यापित नहीं कराया। अभियुक्तों के पदोन्नतिकर्ता अधिकारी के कथन लेखबद्ध नहीं किये और इस बात का साक्ष्य भी एकत्रित नहीं किया कि “क्या पदोन्नति प्राप्त अभियुक्तों ने कथित फर्जी अंकसूचियां उनके समक्ष प्रस्तुत की थी तथा फर्जी अंकसूचियों के आधार पर ही उनकी पदोन्नति हुई है। इसलिये इस उपनिरीक्षक के साक्ष्यिक कथन जप्ती पंचनामा प्र.पी.02 एवं निर्णय की प्रति समुचित कार्यवाही हेतु पुलिस महानिदेशक मध्यप्रदेश शासन भोपाल को एवं पुलिस अधीक्षक डिण्डौरी को भेजने के निर्देश दिए है
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