Home / अतिथि शिक्षकों को तीन महीने से नहीं मिला मानदेय,हर महीने मानदेय पाने वर्षों से तरसते आ रहे  अतिथि शिक्षक परिवार 

अतिथि शिक्षकों को तीन महीने से नहीं मिला मानदेय,हर महीने मानदेय पाने वर्षों से तरसते आ रहे  अतिथि शिक्षक परिवार 

मंडला न्यूज। अतिथि शिक्षकों को नियमित रोजगार देने की नीति बनाने में तो कहने के बाद भी सरकार की रुचि दिखाई दे ...

Photo of author

Chetram Rajpoot

Post date

Chetram Rajpoot

Updated on:

मंडला न्यूज। अतिथि शिक्षकों को नियमित रोजगार देने की नीति बनाने में तो कहने के बाद भी सरकार की रुचि दिखाई दे नहीं रही है,जो भी हो पर मंडला जिले के लगभग ढाई हजार अतिथि शिक्षकों को दिसंबर ,जनवरी और फरवरी यानी तीन महीने से मानदेय का भुगतान नहीं किया जा सका है।जिसके कारण बेरोजगारों से भी बद्तर जीवनयापन करते आ रहे ऐसे अतिथि शिक्षकों के परिवारों पर भारी संकट का दौर चल रहा है। मानदेय भुगतान कराने वाले सरकार के जिम्मेदार नुमाइंदों के अंदर का मानव है भी या नहीं,यह बहुत बड़ा सवाल बनता जा रहा है।
इनके मन में कभी विचार आता भी नहीं कि इतने कम मानदेय पाकर भी अतिथि शिक्षक स्कूलों में सरकारी शिक्षकों के ही बराबर काम में अपना समय देते सरकार की महत्वपूर्ण शिक्षा नीति को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। लाखों रुपए महीने पाने वाले सरकारी शिक्षकों को भी निर्धारित समय पर वेतन भुगतान करने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं होती है, हजारों करोड़ कर्ज ले-लेकर फ्री में बांट भी रही है,पर कड़ी मेहनत करने वाले अतिथि शिक्षकों के ऊंट के मुंह में जीरा जैसा छोटे से मानदेय को भी तीन-चार छः महीनों तक रोके रखा जाता है। पूरी तरह बेरोजगार तो भला काम की तलाश करके जितना काम उतना दाम समय पर लेकर परिवार का भरण-पोषण कर ही लेता है,पर अतिथि शिक्षक सिर्फ एक ही उम्मीद के सहारे स्कूलों से जुड़े रहना आवश्यक समझते हैं,कि अबोध बच्चों को शिक्षा देने जैसा महत्वपूर्ण काम हो रहा है।आज नहीं तो कल सरकार इस नौकरी को पक्की नौकरी जरूर करेगी।इसी भरोसे से 2008 से 2025 आ गया ।
सत्रह वर्ष गुजरने वाले हैं,पर सरकार 02 सितंबर 2023 को भोपाल में अतिथि शिक्षक पंचायत बुलाकर देश दुनिया के सामने सार्वजनिक और अधिकारिक घोषणा कर सत्ता पक्ष के लिए फिर से वोट बटोरने में सफल तो हुई।इसके बावजूद भी घोषणाओं को लागू करने की बजाय मुकरकर दुनिया के सामने भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश के एक लोकप्रिय राज्य मध्यप्रदेश के नाम पर किरकिरी करा रही है। फरवरी महीने का भी आखिरी सप्ताह चल रहा है।अतिथि शिक्षक हर महीने मानदेय पाने के लिए वर्षों से तरस रहे हैं पर सरकार है,जो काम के बदले दिये जाने वाले मानदेय को भी देने में इतनी ज्यादा देर करती है,मानो यह काम के बदले नहीं बल्कि अतिथि शिक्षकों पर कोई बहुत बड़ा अहसान कर रही हो। लगता है,सरकार अतिथि शिक्षकों से श्रमदान कराने के चक्कर में ही रहती है।यह स्थिति इस बार की ही नहीं,यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। कर्ज से लदकर भी घर की रसोई का खर्च नहीं चल पा रहा है। कभी तो महीने समाप्त होते ही बैंक खातों में मानदेय जमा हो जाता! नामालूम सरकार मेहनत की कमाई को भी सुकून से खाने नहीं देती।इसको भी मांगने के लिए ऐंड़ी-चोटी एक करने मजबूर होना पड़ता है।
     बता दें, अतिथि शिक्षकों को उनके द्वारा दी जाने वाली सेवा के एवज में बहुत कम पारिश्रमिक दिया जाता है। वर्ग एक में काम करने वालों को महज अठारह हजार,वर्ग दो वालों को चौदह हजार और वर्ग तीन वालों को मात्र दस हजार महीने के। वह भी कुछ संस्था प्रधानों के द्वारा महीने में कम कार्यदिवस होने पर मानदेय में भी कटौती कर भुगतान करा दिया जाता है। जिसके कारण सरकार से निर्धारित राशि में भी कम ही मिल पाती है। जबकि इन्हीं संस्थाओं के अन्य सरकारी कर्मचारियों के साथ ऐसा शायद नहीं होता। बहरहाल मानदेय की समस्या का समाधान जल्द हो और नियमितीकरण की लंबित कार्यवाही जल्द पूरी हो।
RNVLive