तिरुवनंतपुरम: केरल के प्रसिद्ध श्री कूडलमाणिक्यम मंदिर में जातिगत भेदभाव का मामला सामने आया है। मंदिर में ओबीसी समुदाय के एक व्यक्ति को ‘कझाकम’ (Kazhakam) पद पर नियुक्त किए जाने के बाद, उच्च जाति के पुजारियों ने पूजा करने से इनकार कर दिया। इस घटना के बाद मानवाधिकार आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
केरल देवस्वोम भर्ती बोर्ड (KDRB) की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बालू बी.ए. नामक युवक को त्रिशूर जिले में स्थित श्री कूडलमाणिक्यम मंदिर में ‘कझाकम’ के रूप में नियुक्त किया गया था। अब तक इस पद पर वारियर (Warrier) समाज के लोगों की नियुक्ति होती रही है। बालू के 24 फरवरी को कार्यभार संभालते ही पुजारियों ने पूजा कराने से इनकार कर दिया।

पुजारियों का विरोध और देवस्वोम बोर्ड की कार्रवाई
देवस्वोम बोर्ड ने 6 मार्च को पुजारियों से स्पष्टीकरण मांगा, खासकर क्योंकि 9 मार्च को मंदिर के स्थापना दिवस की रस्में होनी थीं। पुजारियों ने जवाब दिया कि “जब तक गलती नहीं सुधारी जाती, वे पूजा नहीं करेंगे।” देवस्वोम बोर्ड के अध्यक्ष सी.के. गोपी ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि बालू की नियुक्ति बरकरार रहेगी और यदि पुजारी सहयोग नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट, हाईकोर्ट पहुंचा मामला
मानवाधिकार आयोग की सदस्य वी. गीता ने कोचीन देवस्वोम बोर्ड और मंदिर के कार्यकारी अधिकारी को निर्देश दिया कि वे दो हफ्तों में रिपोर्ट सौंपें। वहीं, यह मामला अब केरल हाईकोर्ट में पहुंच गया है।
समर्थन और विरोध की राजनीति
वारियर समाजम (Warrier Samajam) संगठन ने बालू के समर्थन में कानूनी कदम उठाने की घोषणा की। केडीआरबी चेयरमैन के.बी. मोहनदास ने स्पष्ट किया कि नियमों के अनुसार पुजारियों को नियुक्ति पर आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने इस घटना को “21वीं सदी में भी जातिगत भेदभाव की शर्मनाक मिसाल” बताया। यह मामला केरल की सामाजिक संरचना और जातिगत भेदभाव पर एक गंभीर बहस छेड़ रहा है। जहां सरकार और कई सामाजिक संगठन जातिवाद को खत्म करने की दिशा में काम कर रहे हैं, वहीं इस घटना ने यह दिखाया है कि धार्मिक स्थलों में अब भी जाति के आधार पर भेदभाव गहराई से मौजूद है। अब यह देखना अहम होगा कि हाईकोर्ट का फैसला और देवस्वोम बोर्ड की अगली कार्रवाई क्या होगी?