झूठी खबर फैलाने में वैसे तो भारत दुनिया भर में नंबर वन हैं, बात चाहे मुख्य धारा की मीडिया की करें या सोशल मीडिया की..? किसी भी सम्मानित व्यक्ति को टारगेट कर असमाजिक तत्वों का गिरोह उनका सरेआम चारित्रिक हत्या करने से चूकता है, ऐसा ही इस बार आईटी सेल के निशाने पर एमपी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश माननीय सुरेश कुमार कैत रहें हैं, जिनको लेकर फेसबुक, व्हाट्सअप, एक्स जैसे प्लेटफार्म में माननीय मुख्य न्यायधीश पर स्वयं के आवासीय परिसर से हनुमान मंदिर हटाने का आरोप लगाते हुए हिन्दू विरोधी प्रचारित किया गया हैं, गौरतलब हैं की एमपी हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सार्वजानिक एवं थाना परिसरों में बन रहें मंदिरो को लेकर राज्य शासन को जवाब दाखिल करने नोटिस जारी किया हैं… संभवता इसी बात से दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग उन्हें लगातार निशाना बना रहें हैं।
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जबलपुर न्यूज़। एमपी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल धर्मेंद्र सिंह ने सीजे पर मंदिर हटाने के झूठे आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए प्रेस नोट जारी किया हैं। प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख हैं की उच्च न्यायालय के ध्यान में आया है कि कुछ ऐसी रिपोर्ट प्रसारित की जा रही हैं, जिनमें माननीय मुख्य न्यायाधीश के बंगले से मंदिर (भगवान हनुमान मंदिर) हटाने का आरोप लगाया गया है। ये रिपोर्ट पूरी तरह से झूठी, भ्रामक और निराधार हैं। मैं इन दावों को स्पष्ट रूप से स्पष्ट करना चाहता हूँ और उनका खंडन करना चाहता हूँ। लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने भी मामले को स्पष्ट किया है और पुष्टि की है कि माननीय मुख्य न्यायाधीश के निवास पर कभी कोई मंदिर मौजूद नहीं रहा है। मीडिया के कुछ वर्गों में प्रसारित किए जा रहे आरोप मनगढ़ंत हैं और जनता को गुमराह करने और न्यायिक प्रणाली की अखंडता को बदनाम करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास प्रतीत होता है।
ऐसी निराधार खबरों का प्रकाशन न्याय प्रशासन में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप है, और इस तरह, इसे प्रकृति में अवमाननापूर्ण माना जा सकता है। न्यायपालिका के बारे में गलत बयानबाजी करने के प्रयास न केवल कानून के शासन को कमजोर करते हैं, बल्कि न्यायिक स्वतंत्रता की पवित्रता के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करते हैं। रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय इन निराधार आरोपों की स्पष्ट रूप से निंदा करता है और दृढ़ता से कहता है कि मंदिर विध्वंस की ये रिपोर्ट पूरी तरह से असत्य हैं और हमारी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को बदनाम करने के अलावा किसी अन्य उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती हैं, जो निष्पक्षता और निष्पक्षता के साथ न्याय को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। हम मीडिया संगठनों और आम जनता से आग्रह करते हैं कि वे ऐसी अपमानजनक और असत्यापित जानकारी फैलाने से बचें, क्योंकि ऐसा करना जनता के विश्वास और न्यायिक गरिमा के लिए हानिकारक है।