सोमवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, हम ऐसे प्रतिभाशाली युवक को अवसर से वंचित नहीं कर सकते। उसे मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता। शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी-धनबाद को अतुल कुमार को संस्थान के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग बीटेक पाठ्यक्रम में दाखिला देने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस की पीठ ने अपने आदेश में कहा, हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता जैसे प्रतिभाशाली छात्र को वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जो हाशिए पर पड़े समूह से ताल्लुक रखता है और जिसने प्रवेश पाने के लिए हरसंभव प्रयास किया। हम निर्देश देते हैं कि अभ्यर्थी को आईआईटी-धनबाद में प्रवेश दिया जाए तथा उसे उसी बैच में रहने दिया जाए, जिसमें फीस का भुगतान करने की सूरत में उसे प्रवेश दिया गया होता।
आईआईटी धनबाद की ओर से पेश हुए वकील ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) ने अतुल कुमार को एक एसएमएस भेजा और आईआईटी ने भुगतान पूरा करने के लिए दो व्हाट्सएप मैसेज भेजे थे। आईआईटी के वकील ने कहा, वह हर दिन लॉगिन करता था।
इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा, आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? आप कोई रास्ता क्यों नहीं निकाल रहे हैं? सीट आवंटन सूचना पर्ची से पता चलता है कि आप चाहते थे कि वह फीस दे और अगर उसने फीस दे दी, तो फिर किसी और चीज की जरूरत नहीं थी। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “वह बहुत होनहार छात्र है। उसे रोकने वाली एकमात्र चीज 17,000 रुपये थे। उन्होंने कहा, “किसी भी बच्चे को सिर्फ इसलिए इस तरह नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि उसके पास 17,000 रुपये की फीस नहीं है।”
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अतुल कुमार को उसी बैच में प्रवेश दिया जाना चाहिए और किसी अन्य छात्र की उम्मीदवारी को प्रभावित किए बिना उसके लिए एक अतिरिक्त सीट बनाई जानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने अतुल कुमार को शुभकामनाएं देते हुए कहा, शुभकामनाएं……अच्छा करो। आपको बता दें कि, संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को न्याय के हित में कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है। जिसके चलते इसे एक असाधारण घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी उनकी मदद करने में असमर्थता जताई। चूंकि, कुमार ने झारखंड के एक केंद्र से जेईई की परीक्षा दी थी, इसलिए उन्होंने झारखंड राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण का भी रुख किया, जिसने उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया, क्योंकि परीक्षा का आयोजन आईआईटी-मद्रास ने किया था। लेकिन हर जगह से निराशा हाथ लगने के बाद अतुल कुमार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
ये था पूरा मामला
दरअसल आईआईटी धनबाद में प्रवेश के लिए समय पर छात्र का परिवार 17500 रुपये का शुल्क जमा नहीं करा सका था। जिसके चलते वह एडमिशन से बंचित रह गया था। मुजफ्फरनगर के खतौली क्षेत्र के टिटौड़ा गांव निवासी अनुसूचित जाति के मजदूर राजेंद्र कुमार के बेटे अतुल ने बताया कि इस बार जेईई की परीक्षा मद्रास आईआईटी ने कराई थी। उसकी रैंक 1455 के आधार पर आईआईटी धनबाद में प्रवेश लेना था। छात्र का सपना था कि वह इलेक्टि्कल इंजीनियरिंग से पढ़ाई करें, लेकिन यह सपना अभी अधूरा है। असल में 24 जून की शाम पांच बजे तक शुल्क जमा करना था, लेकिन परिवार रुपये नहीं जुटा सका था।