डिंडौरी। जिले में पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन में स्टोन क्रशर के संचालन के खिलाफ एक याचिका एनजीटी की प्रधान पीठ संबोधित की गई है, जिसमें कहा गया है कि स्टोन क्रशर भारी प्रदूषण का कारण बनते जा रहे है और इस तरह के अवैज्ञानिक खनन से पर्यावरण पर अनुकूल प्रभाव पड़ रहा है, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के 3 युवा अधिवक्ता सम्यक जैन, मनन अग्रवाल और धीरज तिवारी ने पर्यावरण और आस-पास रहने वाले लोगों के जीवन को खतरे में डालने के लिए ट्रिब्यूनल से हस्तक्षेप की मांग की हैं।
एनजीटी में जो पत्र याचिका दायर की गई है, उसमें कहा गया है कि वायु प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले स्टोन क्रशरों के संचालन में गंभीर लापरवाही बर्ती जा रही है जिससे ज़िले में जल आपूर्ति की समस्या बढ़ रही है, साथ ही आरोप है कि धूल के चलते हवा और जलस्रोत दूषित हो रहे हैं। अवैध विस्फोटकों की मदद से किए जा रहे विस्फोट न केवल हवा और पानी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा रहे हैं, साथ ही मानव जीवन के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं। ग़ौरतलब है की जल, वायु और आगे प्रदूषण को रोकने के लिए अब तक उठाए गए कदम अपर्याप्त हैं। चूंकि पत्थर तोड़ने और उत्खनन गतिविधियों का मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण गुणवत्ता दोनों पर महत्वपूर्ण दुष्प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत वैधानिक सुरक्षा उपाय, जल (रोकथाम और नियंत्रण) प्रदूषण) अधिनियम, 1974 और वायु रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1981 का वैधानिक नियामकों द्वारा पालन और निगरानी करने की आवश्यकता है।
पर्यावरण नियमों का उल्लंघन
स्टोन क्रशरों ने अपेक्षित प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित नहीं किए हैं, न ही अपेक्षित हरित पट्टी बनाई है और न ही अन्य सुरक्षा उपाय अपनाए हैं। इसके परिणामस्वरूप जल स्तर कम हो रहा है, पानी की कमी हो रही है, कृषि उत्पादकता घट रही है।” ये प्रभाव धूल, ध्वनि और जल प्रदूषण के लिहाज से गंभीर हैं। स्थानीय याचिका में कहा गया है कि क्षेत्र में संचालित इन इकाइयों का प्रशासन पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव को कम करने का कोई प्रयास नहीं करता है। अधिवक्ताओं का यह भी कहना है कि पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की वजह से वन क्षेत्र में पौधों और जानवरों को भी नुकसान पहुंचा है। साथ ही इसकी वजह से मूल निवासियों की जीविका भी प्रभावित हुई है।