– जनप्रतिनिधि और अधिकारियों की आँखों में जमी धूल
– जल संसाधन विभाग के द्वारा सिचाईं संरचनाओं के निर्माण में खर्च किया गया 60510 लाख रुपए
– खरीफ सीजन में 12764 एवं रबी सीजन में 28829 हेक्टेयर भूमि की सरकारी आकड़ो में हो रही सिचाईं
– शासन के कागज़ी आकड़ो में 280 गाँव की भूमि सिंचित..?
“जिला निगरानी समिति का पदेन अध्यक्ष क्षेत्र के सांसद होते हैं,जिनकी तमाम योजनाओं और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पूर्ण कराये जाने की जिम्मेदारी सांसद की होती है लेकिन डिंडोरी जिले में विकास के नाम भ्रष्टाचार और घोटाला चरम पर हैं, वही फग्गन सिंह कुलस्ते निगरानी के नाम पर कागजी खानापूर्ति करते हुए अपनी जिम्मेदरियों से पल्ला झाड रहें हैं “

डिंडौरी। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन और लोककल्याण के प्रति राज्य की जिम्मेदारी हैं कि आमजन के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए सार्थक कार्य करें, लेकिन जब जवाबदेह तंत्रों पर ही धूल की मोटी चादर जम जाए तो लोक कल्याण की उम्मीद धुंधली नजर आती हैं। कुछ ऐसा ही नजारा आदिवासी बहुल डिंडौरी जिले में देखना आम बात हैं,जिले में विकास और जनकल्याण के नाम पर यूँ तो अरबो खरबो रुपये खर्च कर बड़े पैमाने पर सिंचाई योजना के तहत बड़े पैमाने पर ढाँचा गत निर्माण कार्य कराये गए हैं,कराये गए कार्यो से लक्षित वर्गों का भला हो रहा हैं या नही..किंतु कागजों में शत प्रतिशत लाभ का परिणाम सरकारी आंकड़ों में देखा जा सकता हैं। सरकार के दावे और आकड़ो की सच्चाई धरातल पर कुछ और ही है लेकिन फर्जी आंकड़े और सरकारी दावे पर जिले के अधिकारियों के साथ ही जनप्रतिनिधि भी सहमत नजर आते हैं, जिससे सांसद,विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य समेत तमाम जनप्रतिनिधियों की मौन सहमति संदेह के घेरे में है… भले ही अधिकार वातानुकूलित ऑफिसों में बैठकर विकास के कागजी घोड़े दौड़ाते हो लेकिन गाँव- मोहल्ले की जनता के मतों से निर्वाचित हुए जनप्रतिनिधि क्यों जनता की बुनियादी समस्याओं से अंजान बने हुए अधिकारियों के द्वारा दी जा रही कागजी आकड़ो में हाँ में हाँ मिला रहें, इस तरह के सवाल अब जिले की जनता के जुबां से निकल रही हैं ..?

डिंडौरी जिले में कराए गए अनेक बांधों के निर्माण में आदिवासियों की भूमि अधिग्रहित कर कार्य कराये गए हैं ,निर्माण कार्यो के विरोध प्रभावित लोगों ने प्रदर्शन कर निर्माण न कराये जाने की माँग शासन प्रशासन के सामने रखा था, लेकिन उन्हें विकास विरोधी घोषित करते हुए जबरन निर्माण कार्य कराते हुए सिंचाई से उन्नत खेती के साथ आर्थिक उन्नति का झुनझुना पकड़ाया गया है। सरकारी आंकड़ों की माने तो 98 बांध, सिचाईं परियोजना से लगभग 280 गाँवो की भूमि सिंचित किये जाने का दावा किया जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि सही मायने में 80 गाँव के किसानो को तक सिचाईं का लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे अनेको ढांचा है जिनके निर्माण के दशकों गुजरने के बाद एक भी दिन नहरों में पानी नही छोड़ा गया है, वही अनेको नहरे तकनीकी और भौतिक मापदंडों के विपरीत इस तरह से कार्य कराया गया है जहाँ पानी का बहाव ही असम्भव हैं, तरह विभागीय अधिकारियों के ऐसे कारनामे भी धरातल पर देखा जा सकता है ..? आजादी के सात दशकों में आदिवासी बहुल पिछड़े डिंडौरी जिले में 605 करोड़ रुपये से अधिक राशि सिचाईं के ढांचागत निर्माण में खर्च किया जा चुका है, वही 1 हजार करोड़ की लागत से आधा दर्जन से अधिक निर्माण कार्य प्रगतिरत हैं या जनविरोध के कारण अप्रारम्भ हैं..? जब पूर्व में बनाये गए कार्यो का समुचित लाभ आमजनों को नही मिल रहा है तो विभागीय अधिकारी समेत शासन प्रशासन नए निर्माण कार्य स्वीकृत कर आदिवासियों को भूमिहीन बनाने का अभियान क्यो चला रहीं हैं, सूत्रों की माने तो सिचाईं योजना के नाम पर करोड़ो रूपये का बंदरबांट होता हैं जिससे जिले से लेकर मंत्रालय तक में बैठे अधिकारी, नेताओं की मोटी कमाई होती हैं, जिसके चलते प्रभावितों के हितों को किनारे करते हुए यहाँ के अधिकारी स्वयं और उच्च पदस्थ लोगों को फायदा पहुंचाने प्रतिबद्ध नजर आते हैं।

जल संसाधन विभाग के आंकड़ों में हो रहा फर्जी सिचाईं
जल संसाधन विभाग के आंकड़ों में समस्त जलाशयों से लक्ष्य अनुसार कृषि भूमि की सिचाईं किये जाने का दावा किया जा रहा है, जिसकी जानकारी जिले के प्रशासनिक अधिकारियों समेत सांसद, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य, समेत तमाम जनप्रतिनिधियों के साथ ही राजनीतिक दलों के नेताओं को आधिकारिक तौर पर स्पष्ट जानकारी हैं,लेकिन कोई भी जिम्मेदार नेता अधिकारी जो विकास के बड़े बड़े वादे और दावे करते हैं किसानों की समस्याओं को नजदीक से नही देख रहे हैं या देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं। यदि कोई भी जिम्मेदार कोई भी जलाशय से सिचाईं के दावों की पड़ताल कर सच्चाई से रूबरू हो सकते हैं।
1000 करोड़ के निर्माण कार्य स्वीकृत
जिले में फिलहाल 6 सिचाईं योजनाओं के नाम पर 1 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत हैं, जिनके निर्माण होने लगभग 37 हजार हेक्टेयर भूमि सिचाईं किये जाने का लक्ष्य तय किया गया है। आदिवासी उपयोजना मद से मूढ़की मध्यम सिचाईं परियोजना के निर्माण हेतु 10245 लाख रुपये स्वीकृत हैं,जिसमे 9868 लाख रुपये व्यय किया जा चुका है,खरमेर मध्यम परियोजना हेतु 34810 लाख रु,डिंडौरी माध्यम परियोजना 34408 लाख रु, करंजिया नहर मध्यम परियोजना हेतु 13200 रु स्वीकृत हैं,जो अभी तक जनविरोध के कारण अप्रारम्भ हैं जिन्हें दिसम्बर 2024 तक पूर्ण किया जाना है..?

फर्म और अफसरों का गठबंधन,मरम्मत के नाम पर खुली लूट
वित्तीय वर्ष 2021-22 में रोजगार गारंटी योजना से जल संरचनाओं और नहरों के मरम्मत के जल संसाधन विभाग के कुल 313 प्राक्कलनों के नाम पर 31 करोड़ रुपये स्वीकृत किया गया था, जिसमें तमाम कार्यो पर एसडीओ,उपयंत्री और सप्लाई फर्मों ने गठबंधन कर फर्जीवाड़ा करते हुए जमकर सरकारी धन का बंदरबांट किया है जिसके चलते नहरे में पानी छोड़े जाने योग्य नहीं है,इस तरह से भृष्ट अधिकारियों के द्वारा सरकार के मंशा और किसानों के आर्थिक और सामाजिक उन्नति का खुलेआम गला घोंटा जा रहा है।